हाल ही में COP26 के दौरान खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने जलवायु परिवर्तन और टिड्डियों के प्रकोप पर अनुकूलन योजना की मांग की है।
- COP26 के साथ-साथ ग्लोबल लैंडस्केप्स फोरम क्लाइमेट हाइब्रिड कॉन्फ्रेंस (GLF जलवायु 2021) आयोजित हुआ था। इसने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि, रेगिस्तानी टिड्डियों का प्रकोप जलवायु परिवर्तन से निकटता से जुड़ा हुआ है।
- उदाहरण के लिए, वर्ष 2020 में अरब सागर के ऊपर चक्रवाती पैटर्न में बदलाव पूर्वी अफ्रीका, पश्चिमी और दक्षिणी एशिया में टिड्डियों के हमले के पीछे एक कारण था। ईरान में असामान्य वर्षा ने उनके प्रजनन में मदद की थी।
- इसलिए, इस कॉन्फ्रेंस में यह बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन शमन योजनाओं में कीटों और रोगों के विरुद्ध कार्रवाई को भी शामिल किया जाना चाहिए।
- हालांकि, रेगिस्तानी टिड्डियों के आक्रमण को नियंत्रित करने के लिए इसने मैलाथियान और क्लोरपाइरीफोस जैसे अत्यधिक विषैले कीटनाशकों के उपयोग के प्रति सावधान किया है। ये कीटनाशक पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करते हैं।
टिड्डियों के बारे में
ये ग्रासहॉपर कुल से संबंधित हैं तथा वे सर्वाहारी होती हैं। उनका जीवनकाल 90 दिनों का होता है।भारत में टिड्डियों की चार प्रजातियां पाई जाती हैं:
- मरुस्थलीय टिड्डियां (Schistocerca gregaria),
- प्रवासी टिड्डियां (Locusta migratoria),
- बॉम्बे टिड्डियां (Nomadacrissuccincta) और
- वृक्ष टिड्डियां (Anacridium aegyptium)
- टिड्डियों के प्रजनन के तीन मौसम होते हैं- शीतकालीन प्रजनन (नवंबर से दिसंबर), वसंतकालीन प्रजनन (जनवरी से जून) और ग्रीष्मकालीन प्रजनन (जुलाई से अक्टूबर)।
- भारत में इनका प्रजनन काल केवल ग्रीष्म ऋतु में होता है।
टिड्डी चेतावनी संगठन (Locust Warning Organisation: LWO) कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन है। यह रेगिस्तानी टिड्डी की निगरानी, सर्वेक्षण और नियंत्रण के लिए जिम्मेदार निकाय है।
स्रोत – द हिन्दू