‘जलवायु जोखिम और सतत वित्त‘ पर चर्चा
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने ‘जलवायु जोखिम और सतत वित्त’ पर चर्चा-पत्र जारी किया है ।
जलवायु संबंधी और पर्यावरणीय जोखिमों के समय और गंभीरता के बारे में अनिश्चितता बढ़ रही है। यह अनिश्चितता बैंकों के लिए वित्तीय जोखिम के स्रोत के रूप में तेजी से उभरी है। इस प्रकार, समग्र वित्तीय प्रणाली की स्थिरता पर इसके प्रभाव को भी स्वीकार किया गया है।
जलवायु संबंधी खतरे निम्नलिखित के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं:
- भौतिक खतरेः बाढ़, लू आदि से आर्थिक लागत और वित्तीय नुकसान बढ़ सकता है।
- संक्रमण संबंधी खतरेः निम्न कार्बन युक्त अर्थव्यवस्था को अपनाने के क्रम में ऐसे खतरे पैदा हो सकते हैं।
ऐसे खतरों के संभावित प्रभावः
- कर्ज जोखिमः बैंकों के ग्राहकों द्वारा धारित परिसंपत्तियों के मूल्य का हास होता है, या यह आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करता है। इससे ग्राहकों के कार्यों और लाभ प्राप्त करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है।
- बाजार जोखिमः वैल्यूएशन (मूल्यांकन) में गिरावट आती है और आर्थिक गतिविधियों में अस्थिरता बढ़ जाती है।
- तरलता (नकदी) जोखिमः जलवायु संबंधी चरम घटनाओं से निपटने के लिए नकदी की मांग में वृद्धि होती है।
- परिचालन से जुड़े जोखिमः बैंक की अवसंरचना, प्रक्रियाओं आदि पर प्रभाव के कारण व्यवसाय को जारी रखने में बाधा पैदा होती है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के सुझाव–
- अभिशासनः जलवायु और पर्यावरण से जुड़े खतरों एवं अवसरों की पहचान करनी चाहिए। साथ ही, इन खतरों के वास्तविक और संभावित प्रभाव का आकलन भी किया जाना चाहिए।
- उचित योजना निर्माण और जलवायु व पर्यावरण संबंधी रणनीति के कार्यान्वयन के माध्यम से जलवायु परिवर्तन जनित खतरों से निपटने के लिए एक कार्यनीति विकसित की जानी चाहिए।
- क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण आदि के माध्यम से भारत के वित्तीय क्षेत्र में ग्रीन फाइनेंस के महत्व और लाभों को शामिल किया जाना चाहिए।
स्रोत –द हिन्दू