जलवायु कार्रवाई के लिए वित्त
हाल ही में ‘जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तः जलवायु और विकास के लिए निवेश बढ़ाना’ शीर्षक से रिपोर्ट जारी की गई है।
यह रिपोर्ट जलवायु वित्त पर एक स्वतंत्र उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह ने तैयार की है।
इस समूह का गठन वर्ष 2021 में COP-26 प्रेसीडेंसी, COP-27 प्रेसीडेंसी तथा यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चेंज हाई लेवल चैंपियंस ने किया था।
जलवायु वित्त से तात्पर्य स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वित्तपोषण से है। इसे सार्वजनिक और निजी क्षेत्रकों के अलावा वित्त के वैकल्पिक स्रोतों से भी प्राप्त किया जाता है।
यह वित्त शमन (mitigation) और अनुकूलन (adaptation) कार्यों में उपयोग के लिए जुटाया जाता है।
जलवायु वित्त की स्थिति
- कुल जलवायु वित्त का 90% हिस्सा शमन गतिविधियों में उपयोग किया जा रहा है।
- अधिकतर जलवायु वित्त ऋण के रूप में जुटाया गया था। इसमें से केवल 16% कम लागत (निम्न ब्याज दर) वाला था।
- जुटाए गए अधिकतर वित्त, इसके स्रोत देश में ही रह जाते हैं। इसका आशय है कि जिस देश से धन जुटाया जाता है, उसका ज्यादातर हिस्सा उसी देश के जलवायु वित्तपोषण में इस्तेमाल होता है।
- चीन को छोड़कर उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को वर्ष 2030 तक प्रति वर्ष 2 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी।
जलवायु वित्त के लिए रूपरेखा
- बहुपक्षीय विकास बैंकों और विकास वित्त लिखत (Instrument) प्रणालियों से जलवायु वित्तपोषण पांच वर्षों के भीतर तीन गुना (180 अरब डॉलर) किया जाना चाहिए।
- नियमित रूप से विशेष आहरण अधिकार (Special drawing rights) जारी करके इसके पूल का विस्तार किया जाना चाहिए। इसका इस्तेमाल लचीलापन और संधारणीयता बढ़ाने के लिए करना चाहिए।
- कार्बन बाजार प्रकृति-आधारित समाधान के अलावा डायरेक्ट एयर कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज जैसी तकनीक के माध्यम से वातावरण से कार्बन हटाने संबंधी गतिविधियों के लिए तत्काल वित्त प्रदान कर सकते हैं।
- कंपनियों के स्वयं की उत्सर्जन कटौती में किए जा रहे निवेश की जगह कार्बन क्रेडिट के इस्तेमाल को रोका जाना चाहिए।
जलवायु वित्त की मुख्य निधियां निम्नलिखित हैं:
ग्रीन क्लाइमेट फंड: यह UNFCCC के तहत् वर्ष 2011 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है।
वर्ष 2009 में कोपेनहेगन में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हरित जलवायु कोष के गठन का प्रस्ताव किया गया था जिसे वर्ष 2011 में डरबन में हुए सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया।
यह कोष विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये सहायता राशि उपलब्ध कराता है।
स्पेशल क्लाइमेट चेंज फंड: इस कोष का गठन यूएनएफसीसीसी के तहत् वर्ष 2001 में किया गया था। इसे एडैप्टेशन, तकनीकी हस्तांतरण, क्षमता निर्माण, ऊर्जा, परिवहन, उद्योग, कृषि, वानिकी और अपशिष्ट प्रबंधन एवं आर्थिक विविधीकरण से संबंधित परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये गठित किया गया था।
यह जीवाश्म ईंधन से प्राप्त आय पर अत्यधिक निर्भर देशों में आर्थिक विविधीकरण (Economic Diversification) व जलवायु परिवर्तन राहत हेतु अनुदान देता है।
स्रोत – द हिन्दू