जमानत प्रक्रिया (Bail Process)
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने ज़मानत प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकताओं पर बल दिया है।
जमानत शब्द किसी आपराधिक मामले में अभियुक्त की अस्थायी रिहाई को व्यक्त करता है। हालांकि, ऐसा मामला न्यायालय में तब तक लंबित रहता जब तक कि न्यायालय इस पर अंतिम निर्णय नहीं दे देता है।
जमानत एक अधिकार है। यदि आरोपी व्यक्ति को जमानती अपराध के लिए हिरासत में लिया जाता है या गिरफ्तार किया जाता है तो वह व्यक्ति दंड प्रक्रिया संहिता ( CrPC) की धारा 436 के तहत न्यायालय से जमानत की मांग कर सकता है।
अग्रिम (Anticipatory) जमानतः यदि किसी व्यक्ति को गैर-जमानती अपराध (CrPC की धारा 438 ) के लिए गिरफ्तार किए जाने की संभावना प्रतीत होती है, तो वह व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है
न्यायालय के पास CrPC की धारा 437 और 439 के तहत किसी भी स्तर पर जमानत को खारिज करने का अधिकार है ।
जमानत ख़ारिज करने के आधारः जब कोई व्यक्ति आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो और अपनी स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर सकता हो, तो ऐसी स्थिति में जमानत याचिका खारिज की जा सकती है।
जमानत के संबंध में भारत का कानून:
CrPC जमानत शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन केवल भारतीय दंड संहिता के तहत अपराधों को ‘जमानती’ और ‘गैर-जमानती’ के रूप में वर्गीकृत करता है।
CrPC जमानती अपराधों के लिये न्यायाधीशो को जमानत देने का अधिकार देता है।
इसमें जमानतनामा या जमानत बॉण्ड प्रस्तुत न करने पर भी रिहाई होगी।
गैर-जमानती अपराध के मामले में एक न्यायाधीश ही यह निर्धारित करेगा कि आरोपी जमानत पर रिहा होने के योग्य है या नहीं।
गैर-जमानती अपराध संज्ञेय हैं जो पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने में सक्षम बनाता है।
स्रोत – द हिन्दू