जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7): दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के खिलाफ दायर याचिका खारिज
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कानून में उस प्रावधान को रद्द करने से इनकार कर दिया जो उम्मीदवारों को एक साथ दो निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह एक नीतिगत मामला है और राजनीतिक लोकतंत्र से संबंधित मुद्दा है। ऐसे में इस विषय पर संसद को निर्णय लेना है।
बता दें कि अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 33(7) {33(7) of the Representation of the People Act} को अमान्य घोषित करने की मांग की गई थी।
याचिका में कहा गया था कि हमारे देश में एक व्यक्ति, एक वोट, एक उम्मीदवार, एक निर्वाचन क्षेत्र लोकतंत्र का सिद्धांत है जबकि अधिनियम की धारा 33 (7) एक व्यक्ति को दो निर्वाचन क्षेत्रों से आम चुनाव या उप-चुनावों के समूह या द्विवार्षिक चुनाव लड़ने की अनुमति देती है।
हालांकि शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे को संसद के विवेक पर छोड़ने का फैसला किया। न्यायालय ने कहा कि यह विधायी नीति का मामला है, क्योंकि अंततः यह संसद की इच्छा पर निर्भर है कि क्या किसी देश को इस तरह का विकल्प दिया जा सकता है।
इसलिए, उक्त प्रावधान में किसी भी तरह की स्पष्ट मनमानी नहीं है और इसे न्यायालय समाप्त नहीं कर सकता है।
जनप्रतिनिधित्व कानून
संसद और राज्य विधायिकाओं के चुनाव दो कानूनों के प्रावधानों के तहत संपन्न होते हैं – जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के प्रमुख प्रावधान
यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं और विधान परिषदों में सीटों के आवंटन का प्रावधान करता है।
यह निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिये प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है। यह मतदाताओं की योग्यता को निर्धारित करता है।
यह मतदाता सूची तैयार करने और खाली सीटें भरने के तरीके के लिये प्रक्रियाओं का निर्धारण करता है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रमुख प्रावधान
चुनावों के आयोजन को विनियमित करना, सदन की सदस्यता हेतु योग्यताओं और निर्योग्यताओं को विनिर्दिष्ट करना, भ्रष्ट प्रथाओं और अन्य अपराधों पर अंकुश लगाना और निर्वाचन संबंधी आशंकाओं और विवादों के समाधान के लिये प्रक्रियाओं का निर्धारण करना।
स्रोत – द हिन्दू