मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति

मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) चुनने के तरीके पर सरकार से सवाल किया है। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से पूछा है कि CEC और चुनाव आयुक्तों (ECs) की नियुक्ति को विनियमित करने के लिए अभी तक कोई कानून क्यों नहीं बनाया गया है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान का भाग XV निर्वाचन से संबंधित है और भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान करता है।
  • संविधान में निहित अनुच्छेद 324-329 में आयोग और इसके सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित प्रावधान मौजूद हैं।

सांविधिक प्रावधान:

  • मूल रूप से आयोग में केवल एक निर्वाचन आयुक्त होता था, लेकिन निर्वाचन आयुक्त संशोधन अधिनियम 1989 के अधिनियमन के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया है।
  • आयोग में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner) और दो निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioners) होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के तहत, राष्ट्रपति CEC और ECs की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति, जो प्रधान मंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह पर कार्य करता है, ऐसी नियुक्तियां संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन करेगा ।

CEC की नियुक्ति से जुड़े मुद्दे

  • नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका: CEC की नियुक्ति पूरी तरह से कार्यपालिका करती है। इस प्रकार, यह व्यवस्था सत्ताधारी दल को किसी ऐसे व्यक्ति को चुनने का पूर्ण विवेकाधिकार देती है, जिसकी उस दल के प्रति निष्ठा सुनिश्चित है ।
  • जबकि निर्वाचन आयोग सत्तारूढ़ दल और अन्य दलों के बीच एक अर्द्ध-न्यायिक भूमिका का निर्वहन भी करता है। इस परिदृश्य में निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एकमात्र भागीदार नहीं होना चाहिये।
  • योग्यता निर्धारित नहीं है: संविधान ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) के सदस्यों की योग्यता ( कानूनी, शैक्षिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
  • इससे पहले, विधि आयोग ने सुझाव दिया था कि CEC की नियुक्ति प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता (LoP) वाली एक समिति द्वारा की जानी चाहिए।
  • सी.बी.आई. निदेशक या केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC) की नियुक्ति भी ऐसी ही समिति करती है।
  • हालांकि, कई विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि ऐसी समिति में प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता को शामिल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इस पद से उनका हित जुड़ा हुआ है।

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • इसने सिफारिश की है कि भारत निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक कॉलेजियम होना चाहिये जो राष्ट्रपति को अनुशंसाएँ भेजता हो।
  • अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2015) मामले ने भी निर्वाचन आयोग के लिये एक कॉलेजियम प्रणाली की माँग को बल दिया था।
  • मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर और न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की एक पीठ ने भी इस बात का संज्ञान लिया था कि निर्वाचन आयुक्त देश भर में चुनावों का अधीक्षण एवं आयोजन करते हैं और उनका चयन अधिकतम पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिये।

स्रोत – द हिन्दू

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