चुनावों के दौरान मुफ्त उपहार (Freebies) देने की घोषणाओं पर रोक
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने सरकार से चुनावों के दौरान मुफ्त उपहार (Freebies) देने की घोषणाओं को रोकने को कहा है ।
उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह वित्त आयोग से मुफ्त उपहारों की घोषणाओं को रोकने की संभावनाओं पर विचार करने के लिए कहे।
वित्त आयोग पता लगाए कि क्या चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों को तर्कहीन मुफ्त उपहारों की घोषणा करने और इसे वितरित करने से रोकने का कोई तरीका है।
न्यायालय ने कहा कि वित्त आयोग वित्त संबंधी सिफारिशें करने वाला एक स्वतंत्र निकाय है। वित्त आयोग प्रत्येक राज्य के ऋण बोझों का अनुमान लगा सकता है। इसके माध्यम से वह यह जांच कर सकता है कि क्या उस राज्य के लिए इस तरह की घोषणाएं करना व्यावहारिक है।
मुफ्त उपहार देने की घोषणा वास्तव में चुनावी वादे हैं। इसके तहत राजनीतिक दल अतार्किक रूप से इनकी घोषणा या इनका वितरण करते हैं। वर्तमान में, विनियम/कानूनों के अभाव में इस तरह की घोषणाओं को विनियमित करना मुश्किल है।
मुफ्त उपहारों की घोषणा के नकारात्मक प्रभाव–
- यह वित्तीय संकट को आमंत्रण है और राज्यों को दिवालियेपन की ओर ले जाती है।
- यह स्थानीय सरकार की सेवा वितरण प्रणाली को कमजोर करती है
- राज्य के राजकोष पर भारी बोझ डालती है।
- सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को लाभ पहुंचाती है।
चुनाव आयोग द्वारा मुफ्त उपहारों की घोषणा की जांच के लिए उठाए गए कदम –
- सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य (2013) मामलाः उच्चतम न्यायालय ने इससे निपटने के लिए कानूनों को अपर्याप्त पाया। न्यायालय ने ऐसी चुनावी घोषणाओं की जांच करने के लिए चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के साथ परामर्श के बाद दिशा-निर्देश तैयार करने का आदेश दिया।
- वर्ष 2016 में आदर्श आचार संहिता (MCC) के भाग VIII में मुफ्त उपहारों की घोषणा की जांच करने वाले दिशा-निर्देशों को शामिल किया गया था। यह कदम चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को सुनिश्चित करेगा।
स्रोत –द हिन्दू