चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पर चीन का बयान
चीन ने ,हाल ही में अपने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China-Pakistan Economic Corridor) परियोजना को अपनी सबसे बड़ी आर्थिक पहल बता कर भारत के वक्तव्य का जवाब दिया है, क्योंकि भारत ने कुछ समय पूर्व ‘CPEC’ का विरोध किया था।
मुख्य बिंदु
- ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ पाकिस्तान के साथ चीन की 60 अरब डॉलर की परियोजना है।भारत इस परियोजना का समर्थन इसलिए नहीं करता है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan occupied Kashmir) क्षेत्र से होकर गुजरती है। चीन ने भारत के विरोध का उत्तर देते हुए कहा कि, इस परियोजना ने कश्मीर मुद्दे पर उसके सैद्धांतिक रुख को कभी प्रभावित नहीं किया है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China Pakistan Economic Corridor-CPEC), चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना OBOR (ONE BELT ONE ROAD) का एक भाग है।
- वर्ष 2014 में चीन ने CPEC की आधिकारिक रूप से घोषणा की थी। वर्ष 2017 में चीन और पाकिस्तान नें इस आर्थिक गलियारे की योजना को 2023 तक पूरा करने योजना को मंजूरी दी थी।
- इसके माध्यम से चीन अरब सागर के ग्वादर बंदरगाह तक अपनी पहुँच को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है।
- यह मुख्य तौर पर एक हाइवे और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है, जो चीन के काशगर प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से जोड़ेगा। चीन ने पाकिस्तान में आवश्यक बुनियादी ढांचे को तेजी से विकसित करने और आधुनिक परिवहन नेटवर्क, ऊर्जा परियोजनाओं और विशेष आर्थिक क्षेत्रों का निर्माण करके अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए यह परियोजना शुरू की गई थी।
- इस परियोजना के तहत चीन पाकिस्तान में बंदरगाह, सड़कों, पाइप लाइन्स, दर्जनों फैक्ट्रियों और एयरपोर्ट जैसे कई अवसंरचनात्मक जगहों का निर्माण करेगा ।
CPEC पर भारत का रुख
- भारत सीपीईसी परियोजना का विरोध करता है, क्योंकि काराकोरम राजमार्ग के अपग्रेडेशन का कार्य गिलगित-बाल्टिस्तान में हो रहा है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र है।
- अर्थात ‘CPEC’ भारत के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जबकि यह संवैधानिक रूप से भारत का हिस्सा है। चीन ने इस गलियारे के विकास के लिए भारत से कोई इजाज़त नहीं ली है ।
- इस विवादित पाक अधिकृत कश्मीर पर केवल पाकिस्तान की इजाजत से किसी अंतराष्ट्रीय परियोजना का संचालन ‘POK’ पर पाकिस्तान के स्वामित्व, और कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण का कारण बन सकता है, जबकि भारत यह कभी नहीं चाहता है ।
- सीपीईसी और ग्वादर के विकास के पीछे अपनी आपूर्ति लाइनों को सुरक्षित और छोटा करने के साथ-साथ हिंद महासागर में उपस्थिति को मजबूत करने की यह चीन की योजना है। यह व्यापक रूप चीन की उपस्थिति को विस्तार कर हिंद महासागर में भारत के प्रभाव को कम कर सकती है।
- सीपीईसी रणनीतिक रूप से भारत को घेरने की योजना हो सकती है, क्योकि सीपीईसी चीन के लिए पूर्णतः मुक्त यातायात की सुविधा उपलब्ध करवाता है।
- इसके अलावा किसी विषम परिस्थिति में भारत की पश्चिमी पर चीन अपने हथियारों और सेना के साथ पहुँच कर पंजाब और राजस्थान के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है।
- हालांकि चीन और पाकिस्तान दोनों की ओर से यह स्पष्टीकरण दिया गया है, कि ग्वादर बंदरगाह का उपयोग केवल आर्थिक उद्देश्यों के लिए किया जाएगा।
- पर भारत इस बात से अभी तक सहमत नहीं हो पाया है, और भारत को यह चिंता है कि हिंद महासागर में अपना आधिपत्य सुनिश्चित करने के लिए चीन ग्वादर में एक नौसेना बेस स्थापित कर सकता है।
स्रोत – द हिन्दू