चीन ने दक्षिण चीन सागर (SCS) में नौसैनिक अभ्यास आरंभ किया
हाल ही में, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका द्वारा किए जा रहे सैन्य अभ्यास के बीच चीन ने भी विवादित दक्षिण चीन सागर में पांच दिवसीय नौसैनिक अभ्यास आरंभ कर दिया है।
- भारतीय नौसेना भी दक्षिण चीन सागर, पश्चिमी प्रशांत और दक्षिण पूर्व एशिया में एक नौसैनिक कार्य समूह को तैनात कर रही है। इसका उद्देश्य सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री मागों में अपने प्रभाव को बढ़ाना है।
- हाल ही में, भारत ने 11वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (EAS) में यह मत प्रस्तुत किया था कि दक्षिण चीन सागर पर आचार संहिता पूर्णतः समुद्री विधि पर संयुक्त राष्ट्र अमिसमय (UNCLOS),1982 के अनुरूप होनी चाहिए।
दक्षिण चीन सागर का महत्व
सामरिक अवस्थितिः यह एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने वाला एक प्रमुख समुद्री मार्ग है।
प्राकृतिक संसाधनः एक अनुमान के अनुसार SCS में प्राकृतिक गैस और तेल के व्यापक भंडार मौजूद हैं।
ONGC विदेश, तेल एवं प्राकृतिक गैसलिमिटेड (ONGC) की एक विदेशी शाखा है। इसकी वियतनाम के 2 हाइड्रोकार्बनब्लॉक्स में क्रमशः 45% और 100% हिस्सेदारी है।
दक्षिण चीन सागर से संबंधित मुद्दे
अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघनः चीन ने वर्ष 2016 में UNCLOS मध्यस्थता अधिकरण के निर्णय को अस्वीकार कर दिया था। उस निर्णय में यह कहा गया था कि चीन दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से को शामिल करने वाली ‘नाइन-डैश लाइन’ के भीतर जल संसाधनों पर ऐतिहासिक अधिकारों का दावा नहीं कर सकता है।
UNGLOS के बारे में
- यह तृतीय समुद्री विधि पर संयुक्त राष्ट्र अमिसमय (UNCLOS II) के परिणामस्वरूप उत्पन्न एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- यह समुद्री प्राकृतिक संसाधनों के व्यवसाय, पर्यावरण और प्रबंधन के लिए दिशा-निर्देशों के निर्धारणके साथ देशों द्वारा विश्व के महासागरों के उपयोग आदि के संबंध में उन देशों के अधिकारों एवं न उत्तरदायित्वों को परिभाषित करता है।
- भारत ने इस कन्वेंशन पर वर्ष 1982 में हस्ताक्षर किए थे और वर्ष 1995 में इसकी अभिपुष्टि की थी।
स्रोत – द हिन्दू