चीन–तिब्बत विवाद
हाल ही में, ‘सिक्योंग’ या स्वयंभू केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के नेता ‘पेनपा त्सेरिंग’ और अन्य अधिकारियों तथा तिब्बती समुदाय के प्रतिनिधियों से तिब्बत पर अमेरिकी विशेष समन्वयक ‘उजरा ज़ेया’ (Uzra Zeya) ने मुलाकात की।
इस मुलाक़ात को भारत सरकार की ओर से चीन के लिए एक मजबूत संदेश के रूप में भी देखा जा रहा है।
क्योंकि चीन द्वारा ‘तिब्बत’ संबंधी मामलों में किसी बाहरी हस्तक्षेप का विरोध किया जाता रहा है, और अमेरिकी विशेष समन्वयक की इस यात्रा को नई दिल्ली द्वारा सुसाध्य बनाया गया था।
विदित हो कि सम्पूर्ण भारत में लगभग 1 लाख से अधिक तिब्बती बसे हुए हैं ।
तिब्बत की अवस्थिति:
- तिब्बत, एशिया में तिब्बती पठार पर लगभग 24 लाख वर्ग किमी विस्तारित एक भूभाग है, तथा आकार में यह चीन के कुल क्षेत्रफल का लगभग एक चौथाई है।
- यह तिब्बती आबादी के साथ-साथ कुछ अन्य जातीय समूहों की पारंपरिक मातृभूमि है।
तिब्बत पर चीन का अधिकार ?
- ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ द्वारा किए जा रहे दावे के अनुसार, मंगोलों के नेतृत्व वाले ‘युआन राजवंश’ के बाद से तिब्बत चीन का हिस्सा रहा है।
- वर्ष 1951 में तिब्बती नेताओं को चीन द्वारा निर्देशित एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया था।
- इस संधि को “सत्रह सूत्री समझौते” के रूप में जाना जाता है और इसमें तिब्बती स्वायत्तता की गारंटी और बौद्ध धर्म का सम्मान करने का वचन दिया गया है, लेकिन साथ ही, इसमें ‘ल्हासा’ (तिब्बत की राजधानी) में चीनी नागरिक और सैन्य मुख्यालय की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है।
- हालांकि, दलाई लामा सहित तिब्बती आबादी इस संधि को ‘अमान्य’ मानते हैं, और इनका कहना कि इस संधि पर दबाव में हस्ताक्षर करवाए गए थे।
- तिब्बत पर चीन के कब्जे को अक्सर तिब्बती लोगों द्वारा एक ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ के रूप में बताया जाता है।
स्रोत –द हिन्दू