चीता पुनर्वास कार्यक्रम

चीता पुनर्वास कार्यक्रम – हाल ही में सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि वर्ष 1952 में विलुप्त घोषित होने के बाद भारत में चीतों का पुनर्वास किया जाएगा।

  • मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में अगले वर्ष 13 चीते अधिवासित किए जाएंगे। यहाँ चीतों का तेंदुओं के साथ सह-अस्तितत्व संभव है।
  • यह विश्व में प्रथम बार हो रहा है कि एक बड़े मांसाहारी को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप में स्थानांतरितकिया जाएगा।
  • इससे पहले, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने चीते के पुनर्वास के लिए कुनोपालपुर राष्ट्रीय उद्यान (मध्यप्रदेश) की पहचान की थी।
  • यह राष्ट्रीय उद्यान, कुनोपालपुर वन्यजीव अभयारण्य (श्योपुर-शिवपुरी वन भूमि) का एक हिस्सा है और अनुकूल अधिवास, शिकार की बहुतायत आदि के कारण चीते के लिए एक उपयुक्त स्थान है।

चीते के पुनर्वास का महत्वः

  • यह इस बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा कि पशु, पूर्णत नए परिदृश्य में कैसे अधिवासित होते हैं।
  • एक फ्लैगशिप प्रजाति होने के कारण चीते का संरक्षण, घास भूमि और इसके बायोम तथा पर्यावास स्थल को पुनर्जीवित करेगा।
  • फ्लैगशिप प्रजाति वस्तुत ऐसी प्रजातियां होती हैं, जिनके संरक्षण को अन्य जीवों के संरक्षण के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबंधित माना जाता है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची-1 के अंतर्गत संरक्षित जीवों की सर्वाधिक संख्या घास भूमियों में ही अधिवासित है। इसके बावजूद घास भूमियाँ देश में एक अत्यधिक उपेक्षित पर्यावास हैं।

चुनौतियां

चीता, बड़ी बिल्ली परिवार में सबसे छोटा सदस्य होने के कारण, अधिकतर अपने शिकार को बड़ी प्रजातियों से बचाने में विफल रहता है। इस कारण भूख से मरने के लिए भी अत्यधिक सुभेद्य होता है। वायरल रोगों के संचरण की संभावना भी विद्यमान है, जिससे इन आयातित पशुओं की मृत्यु हो सकती है।

चीता के बारे में

IUCN में स्थितिः

  • IUCN के अनुसार अफ्रीकी चीतावल्नरेबल और एशियाई चीता क्रिटिकली एंडेंजर्ड स्थिति में आता है ।
  • अफ्रीकी चीते की तुलना में एशियाई चीता बहुत मजबूत और फुर्तीला होता है।
  • एशियाई चीता (लगभग 50-70 की संख्या में) केवल ईरान में पाया जाता है जबकि अफ्रीकी चीता अफ्रीका के वनों में पाया जाता है।
  • चीतों को जल की अधिक आवश्यकता नहीं होती है और वे शुष्क वनों, घास भूमियों, खुले मैदानों व मरुस्थलीय क्षेत्रों में जीवित रह सकते हैं।

स्रोत – द हिन्दू

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