चापेकर बंधुओं का मामला
22 जून, 1897 को चापेकर बंधुओं ने महाराष्ट्र के पुणे में ब्रिटिश अधिकारी डब्ल्यू.सी. रैंड और उनकी सैन्य सुरक्षा में तैनात लेफ्टिनेंट आयर्स्ट की हत्या कर दी थी।
- दामोदर हरि चापेकर, बालकृष्ण हरि चापेकर और वासुदेव हरि चापेकर को चापेकर बंधुओं के नाम से जाना जाता था। ये 19वीं सदी के उत्तरार्ध में डब्ल्यू.सी. रैंड की हत्या में शामिल भारतीय क्रांतिकारी थे।
- इस हत्याकांड में महादेव विनायक रानाडे भी उनके सहयोगी थे।
- 1857 के विद्रोह के बाद भारत में उग्रवादी राष्ट्रवाद का यह पहला मामला था।
- 1896-97 के दौरान पुणे (पूना) में बुबोनिक प्लेग फैला था। इसे पूना प्लेग भी कहा जाता है। सरकार ने प्लेग के खतरे से निपटने और बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए वर्ष 1897 में एक विशेष प्लेग समिति की स्थापना की थी। चार्ल्स वाल्टर रैंड (डब्ल्यू.सी. रैंड) इस समिति के अध्यक्ष थे।
- प्लेग आयोग ने पुणे में चिकित्सकों को नियुक्त करने की बजाय 800 से अधिक अधिकारियों और सैनिकों को तैनात कर दिया था।
- लोगों को उनके रोग प्रभावित परिजनों का अंतिम संस्कार करने नहीं दिया जा रहा था। ब्रिटिश सैनिकों द्वारा स्थानीय लोगों का उत्पीड़न बढ़ने लगा था।
- रैंड आयोग के निरंतर उत्पीड़न ने चापेकर बंधुओं और क्रांतिकारी “चापेकर क्लब’ के अन्य सदस्यों को रैंड के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रेरित किया।
- चापेकर बंधुओं ने शारीरिक और सैन्य प्रशिक्षण के लिए “चापेकर क्लब” नामक एक क्रांतिकारी संगठन गठित किया था।
स्रोत –द हिन्दू