चाइना प्लस वन रणनीति
हाल ही में चाइना प्लस वन रणनीति के तहत भारतीय सक्रिय औषध सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients : APIs) कंपनियों को लाभ मिलना शुरू हो गया है।
- भारतीय कंपनियां चाइना प्लस वन रणनीति के तहत स्पष्ट रूप से प्राथमिक विकल्प के रूप में उभर रही हैं।
- ‘चाइना प्लस – वन’ एक व्यावसायिक रणनीति है। इसके तहत कंपनियां केवल चीन में ही निवेश करने से बचने और चीन से अलग अन्य देशों में भी निवेश करने संबंधी रणनीति अपना रही हैं।
- यह चीन पर अत्यधिक निर्भरता से जुड़े जोखिमों को कम करती है।
- API औषधि उत्पादों (टैबलेट, कैप्सूल, क्रीम, इंजेक्शन योग्य उत्पादों आदि) का जैविक रूप से सक्रिय घटक है। यह उद्देश्य अनुरूप प्रभाव पैदा करता है।
- वर्ष 2020 में, चीन APIs का दुनिया का सबसे बड़ा विनिर्माता था। उसके बाद अमेरिका और भारत का स्थान था ।
- वर्ष 2020 में भारत का API उद्योग लगभग 79,800 करोड़ रुपये का था। वर्ष 2026 तक इसके 131,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है।
चाइना प्लस-वन रणनीति के तहत भारतीय API उद्योग के पक्ष में निम्नलिखित कारक योगदान दे रहे हैं:
- चीन ने APIs और मध्यवर्ती सामग्रियों की लागत में वृद्धि कर दी है।
- चीन में औषधि मानकों को बढ़ा दिया गया है। साथ ही, श्रमिकों के पारिश्रमिक में भी वृद्धि हुई है।
- महामारी की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है।
- भारतीय API उद्योग की उच्च गुणवत्ता वाली अनुसंधान क्षमताओं का पिछला रिकॉर्ड भी बेहतर रहा है।
- भारत में कार्यबल अधिक है और वे कम पारिश्रमिक पर उपलब्ध हैं।
सरकार की प्रमुख पहलें
- मुख्य प्रारंभिक सामग्री (Key Starting Materials) / औषध मध्यवर्ती और APIs के घरेलू विनिर्माण के लिए उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की गई है
- बल्क ड्रग पार्क को प्रोत्साहन देने के लिए योजना चलाई जा रही है।
स्रोत – द हिन्दू