चमगादड़ में पाया गया निपाहवायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज़

चमगादड़ में पाया गया निपाहवायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज़

हाल ही में ‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Medical Research– ICMR) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (National Institute of Virology-NIV ) द्वारा महाराष्ट्र के लोकप्रिय हिल स्टेशन महाबलेश्वर की एक गुफा के चमगादड़ों पर एक सर्वेक्षण किया गया।

इस सर्वेक्षण का उद्देश्य, चमगादड़ प्रजातियों में निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी की संभावित उपस्थिति का पता लगाना, तथा भारत के चमगादड़ों में ‘निपाह वायरस’ (NiV) के प्रसार का अध्ययन करना था।

विदित हो कि ‘निपाह वायरस’ को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक प्राथमिकता सूची के शीर्ष -10 रोगजनकों में शामिल किया है।

सर्वेक्षण के बारे में:

  • ‘राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान’की टीम ने भारत में पाए जाने वाले ‘रूसेटस लेसचेनौल्टी’ (Rousettus leschenaultii) और ‘पिपिस्ट्रे लसपिपिस्ट्रेलस’ (Pipistrellus pipistrellus ) चमगादड़ों पर अध्ययन किया ।
  • फल खाने वाले बड़े चमगादड़ ‘पटरोपसमेडियस’ भारत में NiV के अध्ययन के प्रमुख स्रोत हैं, क्योंकि पूर्व में हुए NiV प्रकोपों ​​​​के दौरान एकत्र किये गए इन चमगादड़ों के नमूनों में NiV RNA और एंटीबॉडी दोनों का पता लगाया गया था।

भारत में निपाह वायरस का प्रकोप:

  • ‘निपाह वायरस’ का प्रकोप भारत में वर्तमान तक 4 बार फ़ैल चुका है, और इस वायरस के संक्रमण से मृत्यु दर 65 प्रतिशत और 100 प्रतिशत तक रही है। वर्ष 2018 में केरल राज्य में ‘निपाह वायरस’ का प्रकोप फैला था।
  • WHO ने दक्षिणी एशियाई देशों तथाभारत के कुछ राज्यों को इस बीमारी के संभावित हॉटस्पॉट के रूप में चिह्नित किया गया है।

चुनौतियाँ

निपाह वायरस लोगों के लिए काफी खतरनाक माना जाता है, क्योंकि अभी तक इसकी रोकथाम के लिए कोई दवा या वैक्सीन विकसित नहीं की जा सकी है, और इससे संक्रमित लोगों में मृत्यु दर उच्च होती है। यह वायरस कोविड-19 से भी घातक है, क्योंकि कोविड -19 से संक्रमित रोगियों में ‘मामला मृत्यु दर’ (Case Fatality Rate- CFR), 1-2 प्रतिशत के बीच देखी गई है, जबकि निपाह संक्रमण के मामले में यह दर 65-100 प्रतिशत तक पहुँच जाती है।

निपाह वायरस:

  • यह जानवरों से इंसानों में फैलने वाला एक ज़ूनोटिक वायरस है।
  • जीव जो निपाह वायरस एन्सेफेलाइटिस का कारण बनते हैं, वह पैरामाइक्सोविरिडे (Paramyxoviridae), जीनस हेनिपावायरस(genus Henipavirus) का राइबोन्यूक्लिक एसिड वायरस है, और यह हेंड्रा वायरस से निकटता से संबंधित है।
  • हेंड्रावायरस संक्रमण एक दुर्लभ उभरता हुआ ज़ूनोसिस है । यह संक्रमित घोड़ों और मनुष्यों दोनों में गंभीर बीमारी का कारण बनता है। इसे सर्व प्रथम वर्ष 1998 और 1999 में मलेशिया और सिंगापुर में देखा गया था।
  • इसकी शुरुआत घरेलू सुअरोंसे हुई थी । इसके बाद इसे कुत्तों, बिल्लियों, बकरियों, घोड़ों और भेड़ों सहित घरेलू जानवरों की कई प्रजातियों में देखा गया था ।

संक्रमण:

यह रोग पटरोपसजीनस के ‘फ्रूटबैट’(Fruit bats), जिसे ‘फ्लाइंगफॉक्स’ भी कहा जाता है , के माध्यम से फैलता है, जो निपाह और हेंड्रावायरस के प्राकृतिक स्रोत हैं।

यह वायरस चमगादड़ के मूत्र ,मल, लार और जन्म के समय निकलने वाले तरल पदार्थों में उपस्थित होता है।

लक्षण:

मनुष्यों में इसके लक्षण बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, भटकाव, मानसिक भ्रम, कोमा और संभावित मृत्यु आदि एन्सेफेलाइटिक सिंड्रोम सामने आते हैं।

स्रोत – द हिन्दू

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