चंद्रयान-3 मिशन

चंद्रयान-3 मिशन

चंद्रयान-3 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO/इसरो) चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव का अन्वेषण क्यों करना चाहता है ?

चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 मिशन ( 2019 ) का अनुवर्ती मिशन है। चंद्रयान-2 मिशन आंशिक रूप से विफल हो गया था। इसका कारण यह था कि इसके लैंडर और रोवर चंद्रमा पर सॉफ्ट – लैंडिंग नहीं कर सके थे।

चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट, चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट जैसी ही है । यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर है।

चंद्रयान-3 के सफल होने पर, यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सॉफ्ट – लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला मिशन बन जाएगा ।

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के निम्नलिखित लाभ हैं:

इसके दक्षिणी ध्रुव पर पाए जाने वाले क्रेटर्स पर अरबों वर्षों से सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचा है। इस कारण यह सौरमंडल की उत्पत्ति का एक बेहतर रिकॉर्ड प्रदान कर सकता है ।

इसके स्थायी रूप से छाया वाले क्रेटर्स में पर्याप्त जल होने का अनुमान है। इसका उपयोग संभावित रूप से भविष्य के मिशनों के लिए किया जा सकता है।

इसकी लाभप्रद अवस्थिति इसे भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक उपयुक्त स्थल बनाती है।

दक्षिणी ध्रुव पर हाइड्रोजन, अमोनिया, मीथेन, सोडियम, पारा और चांदी के अंश मौजूद हैं। इस कारण यह आवश्यक संसाधनों का एक अप्रयुक्त स्रोत है।

चंद्रमा पर उतरने वाले पिछले सभी अंतरिक्ष यान उसके भूमध्यरेखीय क्षेत्र में उतरे हैं।

चंद्रमा की भूमध्य रेखा के पास लैंडिंग अपेक्षाकृत आसान और सुरक्षित होती है।

यह भू–भाग और यहां का तापमान उपकरणों के लंबे व निरंतर संचालन में सहायक एवं अधिक अनुकूल होते हैं।

कम-से-कम पृथ्वी के सम्मुख वाले हिस्से पर सूर्य का प्रकाश प्रचुर मात्रा में मौजूद रहता है।

स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस

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