ब्रह्मांड के ग्रेविटेशनल वेव बैकग्राउंड की खोज
हाल ही में पहली बार ब्रह्मांड के ग्रेविटेशनल वेव बैकग्राउंड का पता चला है। ग्रेविटेशनल वेव या गुरुत्वीय तरंगें (GW) स्पेस-टाइम की संरचना में उत्पन्न लहरें (Ripples) हैं ।
ये तरंगें ब्रह्मांड में सर्वाधिक ऊर्जावान परिघटनाओं (जैसे-दो ब्लैक होल्स के विलय और न्यूट्रॉन तारे की टक्कर ) के कारण उत्पन्न होती हैं। सबसे पहले आइंस्टीन ने अपने ‘सापेक्षता के सिद्धांत में इनके बारे में पूर्वानुमान लगाया था।
इन्हें पहली बार 2015 में खोजा गया था। हालांकि, अब तक इन तरंगों को सबसे कम रेंज की तरंग दैर्ध्य में ही पहचाना गया है। जब गुरुत्वीय तरंगें किसी माध्यम से गुजरती हैं, तो उस माध्यम में हल्का-सा खिंचाव या संकुचन होता है। इस खिंचाव या संकुचन का प्रमाण खोजने के लिए, खगोलविदों ने पल्सर का पर्यवेक्षण किया ।
पल्सर तेजी से घूर्णन करने वाले तारे हैं। ये बहुत सटीक अंतरालों पर विकिरण के बीम (पुंज) उत्सर्जित करते हैं। व्यावहारिक रूप से पल्सर ब्रह्मांडीय लाइटहाउस ( सटीक समय बताने वाली घड़ी के रूप में प्रयुक्त) की तरह कार्य करते हैं ।
अब, वैज्ञानिकों ने पूरे ब्रह्मांड में गुंजायमान “बैकग्राउंड हम” (पृष्ठभूमि गूंज) की खोज की है। इससे कम-आवृत्ति (लंबी-तरंग दैर्ध्य वाली) गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति की पुष्टि करती है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह कॉस्मिक नॉइज़ में लगातार गमन करती रहती है।
कॉस्मिक या स्पेस नॉइज़ इसे गैलेक्टिक रेडियो नॉइज़ भी कहा जाता है। यह वास्तव में कोई ध्वनि नहीं है, बल्कि पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर घटित होने वाली एक परिघटना है। ये तरंगें गुरुत्वाकर्षण की प्रकृति के अध्ययन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
पुणे स्थित जायंट मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप (GMRT) विश्व के उन छह बड़े टेलिस्कोप्स में से एक है, जिसने ग्रेविटेशनल वेव बैकग्राउंड का साक्ष्य प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पांच अन्य टेलीस्कोप जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली और नीदरलैंड में स्थित हैं।
पल्सर के माध्यम से गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाना–
- सुदूर आकाशगंगाओं में स्थित सुपरमैसिव ब्लैक होल्स के विलय से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंगें पृथ्वी की अवस्थिति को सूक्ष्म रूप से बदल देती हैं ।
- टकराने के कारण उत्पन्न होने वाले रेडियो बर्स्ट (प्रस्फुटन) के आगमन के समय में छोटे-छोटे अंतर को पृथ्वी पर स्थित टेलीस्कोप मापते हैं।
- पल्सर्स पर प्रभाव को मापने से गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाने की संभावना बढ़ जाती है ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस