ग्रेट बैरियर रीफ के आवरण में सबसे अधिक विस्तार
हाल ही में जारी ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ (GBR) में सुधार और जलवायु खतरों के प्रति संवेदनशीलता रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 36 वर्षों के भीतर ग्रेट बैरियर रीफ के आवरण में सबसे अधिक विस्तार हुआ है।
ग्रेट बैरियर रीफ में जो सुधार हुआ है उसमें तेजी से बढ़ने वाले एक्रोपोरा प्रवाल (मूंगा) की बड़ी भूमिका रही है। संयोग से, तेजी से बढ़ने वाले ये मूंगे पर्यावरणीय दबावों जैसे बढ़ते तापमान, चक्रवात, प्रदूषण आदि के प्रति भी अतिसंवेदनशील होते हैं।
मूंगा चट्टानें अकशेरुकी व छोटे नरम शरीर वाले जीवों की बड़े अधिवास हैं। इन्हें कोरल पॉलीप्स कहा जाता है। ये जूजेंथेले (Zooxanthellae) नामक छोटे शैवाल जैसे जीवों के साथ सहजीवी संबंध में रहते हैं।
कोरल पॉलीप्स पोषक तत्वों के बदले में जूजेंथेले को सुरक्षा प्रदान करते हैं। जूजेंथेले उन्हें अलग-अलग रंग भी प्रदान करते हैं।
मूंगे दो प्रकार के होते हैं:
- कठोर मूंगे: ये मूंगा चट्टान के निर्माण आधार के रूप में कार्य करते हैं। वे कठोर, सफेद मूंगा बाह्य कंकाल बनाने के लिए समुद्री जल से कैल्शियम कार्बोनेट प्राप्त करते हैं।
- नरम मूंगे: ये लचीले होते हैं, क्योंकि उनमें ठोस कंकाल की कमी होती है।
प्रवाल भित्तियां सर्वाधिक जैव विविधता वाले और उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं। ये तटरेखाओं के लिए प्राकृतिक अवरोधक के रूप में भी कार्य करती हैं । साथ ही 500 मिलियन से अधिक लोगों को खाद्य स्रोत प्रदान करती हैं, पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देकर लोगों को आजीविका प्रदान करती हैं।
ग्रेट बैरियर रीफ इतनी विशाल है कि यह अंतरिक्ष से दिखाई देती है। यह लगभग 3,000 अलग-अलग मूंगा चट्टानों से बनी है, इसके सर्वाधिक उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य के कारण इसे वर्ष 1981 में विश्व विरासत क्षेत्र घोषित किया गया था।
भारत में निम्नलिखित क्षेत्रों में मूंगा चट्टानें/ भित्तियां पाई जाती हैं:
- कच्छ की खाड़ी,
- मन्नार की खाड़ी,
- अंडमान और निकोबार,
- लक्षद्वीप और मालवण (महाराष्ट्र)।
स्रोत –द हिन्दू