ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि से होंगी स्थानिक प्रजातियां विलुप्त
हाल ही में बायोलॉजिकल कंजर्वेशन जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में कहा गया है कि यदि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में लगातार वृद्धि जारी रहती है तो बहुत से जानवरों और पौधों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है ।
अध्ययन के मुख्य बिंदु:
- अध्ययन में कहा गया कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में यदि वृद्धि होती है तो संसार की 95% समुद्री प्रजातियां और 92% स्थल आधारित प्रजातियों की संख्या में कमी आ सकती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण ही उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में, 60% से अधिक स्थानिक प्रजातियों को विलुप्त होने का सामना करना पड़ रहा है।
- इसके साथ ही द्वीपों में निवास करने वाली सभी स्थानिक प्रजातियां जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त होने के उच्च जोखिम में हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ों में प्रत्येक पांच स्थानिक प्रजातियों में से चार विलुप्त होने के उच्च जोखिम में हैं।
- ज्ञात हो कि पेरिस जलवायु समझौते के तहत देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का संकल्प व्यक्त किया है, यदि ऐसा होता है तो अधिकांश प्रजातियों को बचाने में मदद मिलेगी।
वैश्विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने प्रभाव
- बायोलॉजिकल कंजर्वेशन जर्नल अध्ययन के अनुसार यदि वैश्विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है,तो द्वीपों में वास करने वाली सभी स्थानिक प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएंगी ।
- इतने तापमान पर पहाड़ों में वास करने वाली लगभग 84% स्थानिक प्रजातियाँ विलुप्त होंगी साथ ही भूमि पर रहने वाले स्थानिक प्रजातियों का एक तिहाई और समुद्र में रहने वाली आधी स्थानिक प्रजातियों को विलुप्त होने का सामना करना पड़ेगा।
इस रिपोर्ट के अनुसार 2050 का वैश्विक परिदृश्य
- यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि होती है तो 2050 तक हिंद महासागर, श्रीलंका, फिलीपींस और पश्चिमी घाट के द्वीप की अधिकांश स्थानिक पौधों की प्रजातियाँ विलुप्त हो जायेंगी।
- विदित हो कि व्यापक प्रजातियों की तुलना में, स्थानिक प्रजातियों का बढ़ते हुए तापमान के साथ विलुप्त होने के खतरे की सम्भावना 7 गुना अधिक हो जाती हैं।
- जलवायु परिवर्तन से जिन स्थानिक प्रजातियों को अत्यधिक खतरा है वे हैं : लीमर (विशेषकर वे जो मेडागास्कर के लिए अद्वितीय हैं), और हिम तेंदुआ।
स्रोत – द हिन्दू