भारत में ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों की परिभाषा में होगा बदलाव
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् (EAC-PM) ने भारत में ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों की परिभाषा में बदलाव करने का सुझाव दिया है।
EAC-PM ने ‘शहरी/ग्रामीण भारत क्या है शीर्षक से एक वर्किंग पेपर जारी किया है। इस पेपर में यह सुझाव दिया गया है कि ग्रामीण-शहरी क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिए सरकार को अधिक गतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
ग्रामीण और शहरी बस्तियों की वर्तमान परिभाषा
वर्ष 2017 तक की स्थिति के अनुसार, कोई भी बस्ती जिसे ‘शहरी’ नहीं माना जाता है, उसे स्वतः ‘ग्रामीण’ मान लिया जाता है।
शहरी बस्तियां 2 प्रकार की होती हैं-
- प्रशासनिक रूप से शहरी बस्तियां: ये ऐसी बस्तियां हैं, जो शहरी स्थानीय निकाय (ULB) द्वारा शासित होती हैं ।
- जनगणना के आधार पर शहरी बस्तियां: ये ऐसी बस्तियां हैं-
जिनकी जनसंख्या 5000 से अधिक होती है, जिनकी 75 प्रतिशत पुरुष जनसंख्या गैर-कृषि क्षेत्र में कार्य करती हैं, और जिनका जन – घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. या इससे अधिक होता है।
बस्तियों की वर्तमान परिभाषा से संबंधित समस्याएं –
- वर्तमान वर्गीकरण भारत में शहरीकरण की बढ़ती गति और विस्तार को शामिल करने में अपर्याप्त सिद्ध हो रहा है।
- वास्तविक शहरी क्षेत्रों में पंचायतें मानव संसाधन के मामले में सक्षम नहीं हैं।
- ग्रामीण प्रशासनिक पंचायतों को ULBs में रूपांतरित करने की गति अत्यंत धीमी है। इस कारण सेवाओं के त्रुटिपूर्ण मानक लागू कर दिए जाते हैं ।
- इसके अतिरिक्त, स्थानीय सार्वजनिक वस्तुएं (पेयजल आदि ) भी पर्याप्त रूप से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
EAC-PM द्वारा प्रस्तुत किए गए समाधान
- “ट्रिगर मैकेनिज्म” अपनाया जाना चाहिए । इससे निर्धारित शर्तें पूरी करने के साथ ही ग्रामीण बस्तियां स्वतः शहरी बस्तियां बन जाएंगी।
- मंत्रालयों को ग्रामीण बस्ती की परिभाषा को निर्धारित करने के लिए जनगणना और बस्तियों से जुड़े उन अन्य संकेतकों का उपयोग करना चाहिए, जो उनके कार्यक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त हों।
ग्रामीण स्थानीय निकाय:
- पंचायती राज संस्था (PRIs) भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है।
- पंचायती राज संस्था को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से संवैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया गया ।
- इस अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया भाग-IX और एक नई ग्यारहवीं अनुसूची क को जोड़ा है।
शहरी स्थानीय निकाय:
- शहरी स्थानीय निकायों की स्थापना लोकतांत्रिक वेकेंद्रीकरण के उद्देश्य से की गई है।
- भारत में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय विद्यमान हैं- नगर निगम, नगर पालिका, अधिसूचित क्षेत्र समिति, नगर क्षेत्र समिति, छावनी बोर्ड, टाउनशिप, बंदरगाह ट्रस्ट, विशेष प्रयोजन एजेंसी।
- वर्ष 1992 में शहरी स्थानीय सरकार से संबंधित 74वां संशोधन अधिनियम पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया जो 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
- इसके द्वारा सविधान में भाग IX-A और 12वीं अनुसूची जोड़ी गई।
स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड