गैर- चुनाव अवधि में जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध

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गैर- चुनाव अवधि में जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध

हाल ही में भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) ने स्पष्ट किया है कि गैर- चुनाव अवधि में जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाने के लिए उसके पास कोई शक्ति नहीं है ।

  • विदित हो कि एक जनहित याचिका (PIL) के जवाब में, ECI ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दाखिल किया है।
  • इसमें आयोग ने कहा है कि जब चुनाव का समय नहीं होता तब राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाना, उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता ।
  • ECI ने यह भी कहा है कि उसकी आदर्श आचार संहिता (MCC) में जाति, पंथ या धर्म के आधार पर प्रचार करने या वोट मांगने पर रोक लगाने के लिए नियम शामिल हैं।
  • हालांकि, उपर्युक्त नियमों को केवल चुनाव अवधि के दौरान ही लागू किया जा सकता है, न कि उन अवधियों में जब चुनाव नहीं हो रहे हों ।
  • एक बार किसी राजनीतिक दल के पंजीकृत हो जाने के बाद, धारा 294 (5) के तहत इसकी शर्तों के उल्लंघन सहित किसी भी आधार पर किसी भी राजनीतिक दल के पंजीकरण की समीक्षा करने या पंजीकरण को रद्द करने के लिए कानून में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
  • हालांकि, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनाम समाज कल्याण संस्थान और अन्य, 2002 मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे तीन अपवाद बताए हैं, जिनके तहत ECI किसी राजनीतिक दल के पंजीकरण की समीक्षा कर सकता है। ये तीन अपवाद निम्नलिखित हैं:
  • जब किसी राजनीतिक दल ने धोखाधड़ी या जालसाजी से पंजीकरण कराया हो ।
  • जब कोई राजनीतिक दल धारा 294 (5) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अपने संगम या नियमों और विनियमों की नामावली को बदलता है या आयोग को पता चलता है कि भारत के संविधान के प्रति उसकी आस्था और निष्ठा समाप्त हो गई है ।
  • जब केंद्र सरकार ने किसी पंजीकृत राजनीतिक दल को गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम या इसके समान किसी अन्य कानून के प्रावधानों के तहत गैरकानूनी घोषित कर दिया हो।
  • राजनीतिक दल ऐसे लोगों का एक समूह होता है, जो चुनाव लड़ने और सरकार में सत्ता हासिल करने के लिए एक साथ आते हैं।
  • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A भारत के नागरिकों के संगमों और निकायों का चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों के रूप में पंजीकरण का प्रावधान करती है।

निर्वाचन आयोग के कार्य

  • इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य आम चुनाव या उप-चुनाव कराने के लिये समय-समय पर चुनाव कार्यक्रम तय करना है।
  • यह निर्वाचक नामावली (Voter List) तैयार करता है तथा मतदाता पहचान पत्र (EPIC) जारी करता है।
  • यह राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करता है उनसे संबंधित विवादों को निपटाने के साथ ही उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करता है।
  • निर्वाचन के बाद अयोग्य ठहराए जाने के मामले में आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की बैठक हेतु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।
  • यह राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये चुनाव में ‘आदर्श आचार संहिता’ जारी करता है, ताकि कोई अनुचित कार्य न करे या सत्ता में मौजूद लोगों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग न किया जाए।
  • यह सभी राजनीतिक दलों के लिये प्रति उम्मीदवार चुनाव अभियान खर्च की सीमा निर्धारित करता है और उसकी निगरानी भी करता है।

स्रोत – द हिन्दू

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