हिंद महासागर के नीचे ‘गुरुत्वाकर्षण छिद्र‘ का रहस्य
हाल ही में IISc, बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने हिंद महासागर में ‘ग्रेविटी होल’ के बनने के कारणों की पहचान की है।
इस ग्रेविटी होल को इंडियन ओशन जियोइड लो (IOGL) के नाम से भी जाना जाता है। यह होल तीन मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक चौड़ा है।
IOGL श्रीलंका के ठीक दक्षिण में स्थित है। यहाँ पर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण खिंचाव सबसे कमजोर है। इसके परिणामस्वरूप, यहां पर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत से 100 मीटर कम है। पृथ्वी का आकार वास्तव में गोलाकार नहीं है। यह दोनों ध्रुवों पर चपटी है और भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है।
इसके परिणामस्वरूप और साथ ही अन्य कारकों जैसे- पृथ्वी की भूपर्पटी के द्रव्यमान के कारण गुरुत्वाकर्षण खिंचाव में भिन्नता आती है, जिसकी वजह से पृथ्वी का आकार अनियमित बना हुआ है।
पृथ्वी के औसत समुद्र तल को जोड़ने वाली काल्पनिक रेखा वाले मानचित्र पर इन विसंगतियों को “जियोइड्स” कहा जाता है। इन विसंगतियों की उत्पत्ति गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में अनियमितता के कारण होती है।
IOGL को पृथ्वी पर सबसे निचली जियोइड विसंगति (lowest geoid anomaly) कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि IOGL का निर्माण टेथिस महासागर के नितल के किनारों से ऊपर उठती पिघली हुई चट्टानों के प्लूम्स के कारण हुआ था ।
अफ्रीकी सुपरप्लूम से पदार्थों का अत्यंत तप्त प्रवाह पूर्व की ओर बढ़ने लगा था और अंततः IOGL के नीचे तक पहुंच गया था।
अफ्रीकी सुपर प्लूम पृथ्वी के मेंटल का एक बड़ा भाग है, जो कोर के पास से क्रस्ट तक ऊष्मा को ले जाता है। अत: इस क्षेत्र में कम गुरुत्वाकर्षण के लिए IOGL के नीचे से मध्य मेंटल में हल्के तत्वों या पदार्थों की उपस्थिति जिम्मेदार है।
स्रोत – बिजनेस स्टैण्डर्ड