गिद्धों के लिए हानिकारक दो अन्य दवाओं पर प्रतिबंध
हाल ही में औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड (DTAB) ने गिद्धों के लिए हानिकारक दो अन्य दवाओं पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की है।
DTAB ने गिद्धों के संरक्षण के लिए पशुधन के उपचार में प्रयोग की जाने वाली दो दवाओं के निर्माण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाने पर सहमति व्यक्त की है ।
ये दवाएं हैं – केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक ।
DTAB स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) का हिस्सा है।
यह औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम तथा नियमों के तकनीकी पहलुओं से संबंधित नीतिगत निर्णयों पर मंत्रालय को सिफारिश करता है ।
केटोप्रोफेन, एसिक्लोफेनाक, डाइक्लोफेनाक और निमेसुलाइड एंटी-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं (NSAIDs) हैं ।
इनका उपयोग पशुओं की चिकित्सा में किया जाता है। ये दवाएं गिद्धों और अन्य शिकारी पक्षियों के लिए हानिकारक हैं।
डाइक्लोफेनाक भारत में पहले से ही प्रतिबंधित है।
कुछ NSAIDs का गिद्धों द्वारा पूरी तरह से उपापचय (Metabolize) नहीं हो पाता है । इस कारण वे पक्षियों के गुर्दों को नुकसान पहुंचाती हैं।
इन दवाओं से उपचारित मवेशी उपचार के 3-4 दिनों के भीतर NSAIDs का उपापचय कर लेते हैं । अतः यदि इतनी अवधि बीत जाने के बाद वे मर जाते हैं तथा उन्हें गिद्धों द्वारा खा लिया जाता है, तो इससे गिद्धों के समक्ष कोई खतरा पैदा नहीं होता है ।
भारत में गिद्धों की कुल नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। ये प्रजातियां हैं:
ओरिएंटल सफेद पुट्टे वाला गिद्ध, पतली चोंच वाला गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध, इजिप्टियन गिद्ध, लाल सिर वाला गिद्ध, इंडियन ग्रिफॉन गिद्ध, हिमालयन ग्रिफॉन गिद्ध, सिनेरियस गिद्ध तथा दाढ़ी वाला गिद्ध या लैमर्जियर।
सफेद पुट्टे वाला गिद्ध, पतली चोंच वाला गिद्ध, लंबी चोंच वाला गिद्ध की आबादी में पिछले दशकों में भारी गिरावट आई है। ये तीनों ही क्रिटिकली एंडेंजर्ड हैं।
स्रोत – टाइम्स ऑफ इंडिया