गिग वर्कर्स पर रिपोर्ट
हाल ही में नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (NASSCOM) ने गिग वर्कर्स पर रिपोर्ट जारी की है।
यह रिपोर्ट इस तथ्य को रेखांकित करती है कि वर्ष 2022 में सर्वेक्षण में शामिल संगठनों में से लगभग दो-तिहाई संगठनों (65 प्रतिशत) ने गिग कर्मियों को नियुक्त किया है।
वर्ष 2020 में 57 प्रतिशत संगठनों ने गिग कर्मियों को नियुक्त किया था।
संगठनों द्वारा तकनीकी भूमिकाओं के लिए गिग मॉडल अपनाने के पीछे मुख्य कारण विशेष कौशल, कर्मियों की मांग और लागत कटौती पर बल देना रहा है। पहले यह मॉडल मानव संसाधन और सहयोगी कार्यों तक ही सीमित था।
गिग अर्थव्यवस्था के बारे में:
- गिग इकॉनमी एक मुक्त बाज़ार प्रणाली है जिसमें अस्थायी अनुबंध होता है और संगठन अल्पकालिक जुड़ाव के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
- गिग नियोजन वाले शीर्ष तीन सेगमेंट हैं– सॉफ्टवेयर विकास, UI/UX डिजाइन, और डेटा विश्लेषण।
- हालांकि, 2,000 से अधिक पूर्णकालिक कर्मचारियों वाले संगठनों में गिग वर्कर्स का अनुपात कुल कर्मचारियों की संख्या का 5% से भी कम है।
गिग इकॉनमी के लिये श्रम संहिता:
- मज़दूरी संहिता, 2019 गिग श्रमिकों (संगठित और असंगठित क्षेत्रों सहित) के लिये सार्वभौमिक न्यूनतम मज़दूरी और न्यूनतम मज़दूरी का प्रावधान करती है।
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में गिग कर्मी को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार गिग कर्मी वह है, जो संगठन का कार्य करता है या कार्यप्रणाली में भाग लेता है और नियोक्ता कर्मचारी के पारंपरिक संबंधों के बाहर ऐसी गतिविधियों से आय अर्जित करता है।
गिग अर्थव्यवस्था का महत्व–
- कंपनी शुरू/ संचालित करने के लिए अधिक निवेश की जरुरत नहीं पड़ती है। इसलिए, इसमें भारत में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं हैं।
- इस तरह के मंच महिलाओं और विशेष रूप से दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनुकूल व मनपसंद कार्य का विकल्प उपलब्ध कराते हैं।
- यह लागत और खर्च को कम करती है, क्योंकि यह संगठनों को अपने कार्यालयों के बाहर कर्मियों को नियोजित करने का विकल्प उपलब्ध कराती है।
- इससे कार्यालयों के रखरखाव पर अधिक खर्च करने की आवश्यकता कम हो जाती है।
- यह लोगों को अतिरिक्त आय अर्जित करने का अवसर प्रदान करती है। इससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
गिग अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां–
- प्रौद्योगिकी प्रसार : इंटरनेट सेवाओं और डिजिटल प्रौद्योगिकी तक समान पहंच का अभाव प्रतिबंधात्मक कारक के रूप में कार्य करता है।
- रोजगार की असुरक्षा : रोजगार की सुरक्षा का अभाव, वेतन मिलने में अनियमितता और कामगारों के लिए नियोजन की अनिश्चित स्थिति।
- औपचारीकरण का अभाव : बीमारी में वैतनिक अवकाश, स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच और बीमा कवर का अभाव जैसी चुनौतियां भी विद्यमान हैं।
- तनाव : नियोजन की कोई भावी सुरक्षा नहीं होती और रेटिंग के आधार पर कर्मियों का प्रदर्शन मूल्यांकन भी अन्य चुनौतियां हैं।
स्रोत – द हिन्दू