अविवाहित महिलाओं के लिए गर्भ का चिकित्सीय समापन
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अविवाहित महिलाओं के लिए गर्भपात की अलग-अलग अवधि का विरोध किया है ।
- उच्चतम न्यायालय की राय है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी एक विधवा या तलाकशुदा महिला के समान अनचाहे गर्भ को समाप्त करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
- न्यायालय ने यह राय गर्भ का चिकित्सीय समापन (MTP) अधिनियम, 1971 के एक प्रावधान को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान व्यक्त की है।
- याचिका के तहत एकल महिलाओं के लिए गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति हेतु 20 सप्ताह की सीमा के प्रावधान को चुनौती दी गयी है।
- MTP नियम, 2003 में एक विशेष अंतर मौजूद था। इसमें उन महिलाओं को उनके 24 सप्ताह के गर्भ की समाप्ति की अनुमति दी गई थी, जिनकी गर्भावस्था के दौरान वैवाहिक स्थिति में बदलाव आता है, जैसे कि विधवा हो जाना या तलाक हो जाना।
- हालांकि, अविवाहित महिलाओं के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
गर्भपात पर भारत में कानून
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312: यह धारा गर्भवती महिला द्वारा स्वैच्छिक गर्भपात को भी अपराध ठहराती है, भले ही उसकी सहमति से गर्भपात कराया गया है।
- हालांकि, महिला के जीवन पर खतरे की स्थिति में गर्भपात की अनुमति है।
- MTP अधिनियम, 1971 के तहत गर्भपात के नियमों को उदार बनाया गया है। इसके तहत कुछ शर्तों के अधीन और निर्धारित अवधि के भीतर चिकित्सक द्वारा गर्भ के समापन की अनुमति दी जाती है।
- MTP अधिनियम, 2021 ने गर्भपात के लिए अवधि का विस्तार किया है। इस प्रकार, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात सेवाओं तक पहुंच को बढ़ाया है।
- इस अधिनियम के तहत 20 सप्ताह तक के गर्भ के समापन के लिए एक चिकित्सक की राय और 20 से 24 सप्ताह तक के गर्भ के समापन के लिए दो चिकित्सकों की राय को अनिवार्य किया गया है।
- बलात्कार पीड़िता, नाबालिगों आदि सहित कई श्रेणियों के लिए भी 20 से 24 सप्ताह के गर्भ के समापन की अनुमति
स्रोत –द हिन्दू