खाड़ी देशों के बीच ‘एकजुटता और स्थिरता’ समझौता
- सऊदी अरब और कतर के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से खाड़ी देशों के नेताओं के साथ ‘एकजुटता और स्थिरता’ समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- यह समझौता सऊदी अरब के अल उला में आयोजित 41वें खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) शिखर सम्मेलन में हुआ।
- इसके साथ ही तीन साल की लंबी अनबन के बाद ‘दोहा’ को वापस क्षेत्रीय समूह में शामिल कर लिया गया है।
पृष्ठभूमि:
सऊदी अरब के नेतृत्व में खाड़ी देशों के समूह ने जून, 2017 में ‘कतर’ से राजनयिक, कारोबारी एवं परिवहन संबंधों पर रोक लगा दी थी। इन देशों ने कतर पर ईरान के नजदीक होने तथा कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों के समर्थन का आरोप लगाया था। कतर ने आरोपों को खारिज करते हुए इन प्रतिबंधों को अपनी संप्रभुता पर हमला बताया था।
कारण:
- कतर पर आरोप लगाया गया था कि वह ईरान के साथ संबंध मज़बूत कर रहा है और कट्टरपंथी इस्लामी समूहों का समर्थन करता है।
- कतर पर ईरान और मुस्लिम ब्रदरहुड (सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रतिबंधित एक सुन्नी इस्लामी राजनीतिक समूह) के समर्थन से आतंक फैलाने और उसे वित्तपोषित करने का आरोप लगाया गया था।
उद्देश्य:
इस समझौते का उद्देश्य खाड़ी क्षेत्र को बढ़ावा देने के प्रयासों में एकजुटता लाना और खाड़ी देशों के समक्ष मौजूद चुनौतियों, विशेषतः ईरान के परमाणु व बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम तथा उसकी अन्य विनाशकारी योजनाओं के कारण उत्पन्न चुनौतयों का एकजुटता से सामना करना।
खाड़ी सहयोग परिषद:
जीसीसी एक राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 1981 में बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात के बीच संपन्न एक समझौते के माध्यम से की गई थी। ध्यातव्य है कि भौगोलिक निकटता, इस्लाम आधारित समान राजनीतिक प्रणाली और सामान्य उद्देश्य के कारण इन सभी देशों के बीच एक विशिष्ट संबंध मौजूद है।
भारत और ईरान:
- भारत ने हमेशा ईरान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध साझा किये हैं, हालाँकि भारत-ईरान संबंध अमेरिका के दबाव के कारण मौजूदा समय में अपने सबसे जटिल दौर से गुज़र रहे हैं।
- भारत के क्रूड आयात में जीसीसी के आपूर्तिकर्ताओ का लगभग 34 प्रतिशत हिस्सा है।
- मई, 2018 में अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते (संयुक्त व्यापक क्रियान्वयन योजना) की आलोचना करते हुए इससे हटने का निर्णय लिया तथा ईरान के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंधों को और कड़ा कर दिया गया।
भारत और कतर:
- हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने कतर के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की और दोनों देशों के बीच आर्थिक एवं सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा की।
- कतर के साथ भारत मैत्रीपूर्ण संबंध साझा करता है और भारत ने कतर पर प्रतिबंधों के समय भी तेल समृद्ध इस देश के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे।
इस क्षेत्र में भारत की समग्र भूमिका:
- भारत ने सदैव ही इस क्षेत्र के स्थानीय या क्षेत्रीय विवादों में शामिल होने से परहेज़ किया है, क्योंकि भारतीय हितों को शक्ति प्रदर्शन की नहीं, बल्कि शांति एवं क्षेत्रीय स्थिरता की आवश्यकता है।
- खाड़ी देश भारत के शीर्ष व्यापारिक भागीदार देशों में शामिल हैं जो भारत में ऊर्जा आयात की बढ़ती मात्रा तथा खाड़ी देशों के बीच ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती परस्पर-निर्भरता को चिह्नित करता है। साथ ही खाड़ी देशों से भारत के हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश की संभावना है।
- राजनीतिक सहयोग के साथ-साथ सुरक्षा क्षेत्र, खासतौर पर आतंकवाद-रोधी कार्यों में भारत और खाड़ी देशों के बीच सहयोग में काफी बढ़ोतरी हुई है।
- भारत और खाड़ी देश रक्षा क्षेत्र में सहयोग के लिये भी यथासंभव कदम उठा रहे हैं।
- उदाहरणता बहुराष्ट्रीय मेगा अभ्यास ‘मिलन’ में सऊदी अरब, ओमान, कुवैत और अन्य खाड़ी देशों की भागीदारी रही।
इस क्षेत्र में शांति महत्वपूर्ण क्योंहै?
- मध्य-पूर्व में किसी भी प्रकार की अस्थिरता से तेल की कीमतों में वृद्धि होने की संभावना रहती है, और दीर्घकालीन अस्थिरता की स्थिति में तेल की उच्च कीमतें बरकरार रहती हैं।
- कतर, विश्व में तरल प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है तथा मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात प्रमुख प्राप्तकर्ता हैं।
- भारत, अपनी 90% प्राकृतिक गैस आवश्यकताओं के लिए कतर पर निर्भर है।
- कतर का सॉवरिन वेल्थ फंड और राज्य के स्वामित्व वाली अन्य संस्थाएं, साथ ही कतर के निजी निवेशक, भारत में अवसरंचना क्षेत्र में निवेश करने का विकल्प देख रहे हैं।
स्रोत: द हिंदू