क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) में वित्तीय और परिचालन सुधारों की समीक्षा
हाल ही में सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) में वित्तीय और परिचालन सुधारों की समीक्षा की है । RRBs को वित्तीय रूप से स्थिर बनाने के लिए सरकार ने कई प्रकार के सुधार करने को कहा है।
इनमें कुछ प्रमुख सुधार निम्नलिखित हैं:
RRBs को डिजिटलीकरण की ओर बढ़ना चाहिए और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को अधिक कर्ज देकर अपने ऋण आधार का और विस्तार करना चाहिए।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) के बारे में:
- इनकी स्थापना नरसिंहम समिति (1975) की सिफारिशों के आधार पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अधिनियम, 1976 के तहत की गई है। इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण सुविधा बढ़ाने के लिए स्थापित किया गया है।
- RRBs को वाणिज्यिक बैंकों की तरह प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के दायरे में लाया गया है।
- इन बैंकों की शेयरधारिता 50:15:35 के अनुपात में क्रमशः केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकार और प्रायोजक बैंक के पास है।
RRBs का महत्व–
- ग्रामीण लोगों के घर तक बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध कराते हैं।
- ये कमजोर वर्ग को संस्थागत ऋण उपलब्ध कराते हैं।
- सहकारी समितियों और स्वयं सहायता समूहों को आसान तथा सीधे वित्त प्रदान करते हैं।
RRBs के समक्ष वर्तमान चुनौतियां –
- अधिक घाटाः इसकी कई शाखाओं के पास पर्याप्त व्यवसाय नहीं है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्यक्ष लाभ अंतरण जैसी सरकारी योजनाओं को लागू करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
- ऋण की वसूली: RRBs की ऋण वसूली दरों में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट दर्ज की गई है। इस वजह से इनकी गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (NPA) अधिक हो गई हैं।
- नियंत्रण में एकता का अभावः ये बैंक केंद्र सरकार के अलावा अलग-अलग एजेंसियों, जैसे-प्रायोजक बैंक, नाबार्ड तथा भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियंत्रित होते हैं।
स्रोत: द हिंदू