क्लाउड वार

क्लाउड वार

हाल ही में मध्य पूर्व के देशों के बीच ‘वर्षा’ को लेकर प्रतिद्वंद्विता का नया क्षेत्र ‘क्लाउड वार’ के रूप में उभर रहा है।

  • मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों ने रसायन एवं तकनीक विकसित करने के लिए एक प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी है। उन्हें उम्मीद है कि इनके सहारे वे बादलों से बारिश की बूंदों को भूमि पर लाने में सक्षम होंगे।
  • अलग-अलग पदार्थों / रसायनों को बादलों में जानबूझकर प्रवेश कराया जाता है। प्रवेश करने के बाद वे संघनन अणु की भूमिका निभाकर वर्षा कराने में सहायता करते हैं। यह प्रक्रिया ‘क्लाउड सीडिंग’ कहलाती है।
  • क्लाउड सीडिंग सामग्रियों में लवण के कण (सोडियम क्लोराइड), सिल्वर आयोडाइड, शुष्क बर्फ (कार्बन डाइऑक्साइड), पोटेशियम आयोडाइड, प्रोपेन आदि शामिल है
  • ये घटक बादलों का निर्माण करने वाले जल वाष्प कणों से बंध जाते हैं।
  • संयुक्त कण (सीडिंग सामग्री और जल वाष्प) थोड़े बड़े होते हैं और बदले में अधिक जलवाष्प कणों को आकर्षित करते हैं, जब तक कि वे बूंदें नहीं बन जाते हैं। अंत में वे भारी होकर वर्षा की बूंदों के रूप में भूमि पर गिरते हैं।

क्लाउड सीडिंग के लाभ:

  • सर्दियों में हिमपात कराया जा सकता है,
  • प्राकृतिक जल आपूर्ति के पूरक के रूप में कार्य करता है,
  • वायु गुणवत्ता में सुधार करता है आदि।

चिंताएं और चुनौतियां

  • सिल्वर आयोडाइड जल में रहने वाले जीवों के लिए विषैला होता है।
  • सभी बादलों में वर्षा करने की क्षमता नहीं होती है।
  • कुछ अन्य चिंताएं हैं: बहुत अधिक वर्षा या हिमपात का होना, बादलों का अन्य क्षेत्रों की ओर जाना आदि।

स्रोत द हिन्दू

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