क्रॉस बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी मॉडल कानून
हाल ही में सरकार सीमा पार इन्सॉल्वेंसी (दिवाला) संबंधी कार्यवाई को अपनाने की योजना को टाल सकती है।
सीमा पार इन्सॉल्वेंसी उन परिस्थितियों को दर्शाती है, जिसमें एक दिवालिया देनदार के पास एक से अधिक देशों में परिसंपत्ति और/या लेनदार होते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि पर संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCITRAL) का 1997 का क्रॉस बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी मॉडल कानून, सीमा पार इन्सॉल्वेंसी के मुद्दों से निपटने के लिए व्यापक रूप से स्वीकृत कानूनी ढांचा है ।
वर्तमान में, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की निम्नलिखित दो धाराएं सीमा पार इन्सॉल्वेंसी के संबंध में एक बुनियादी ढांचा प्रदान करती हैं:
- धारा 234: यह केंद्र सरकार को द्विपक्षीय समझौते करने में सक्षम बनाती है ।
- धारा 235: इसके अंतर्गत न्याय – निर्णयन प्राधिकारी विदेशी न्यायालयों को अनुरोध – पत्र जारी कर सकते हैं।
सीमा पार इन्सॉल्वेंसी कानून की आवश्यकता
- वर्तमान ढांचा भारत के द्विपक्षीय संधियों में प्रवेश करने पर निर्भर करता है, जिनके लिए दीर्घकालिक वार्ता की आवश्यकता होती है। यह विदेशी निवेशकों के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर सकता है।
- जहां कई क्षेत्राधिकार शामिल हैं, वहां प्रत्येक देश के साथ द्विपक्षीय संधियों को लागू करना होगा। इससे जटिलताएं पैदा होंगी।
- वर्तमान प्रक्रिया के तहत अलग-अलग कार्रवाइयां तब तक उपलब्ध नहीं होंगी, जब तक कि द्विपक्षीय संधियां विशेष रूप से इस संबंध में प्रावधानों को शामिल नहीं करती हैं।
- इन कार्रवाइयों में विदेशी कार्रवाइयों को मान्यता, भारतीय और विदेशी न्यायालयों के बीच सहयोग आदि सम्मिलित हो सकती हैं।
- जब किसी भारतीय देनदार की परिसंपत्ति किसी ऐसे देश में होती है, जिसके साथ भारत का कोई द्विपक्षीय समझौता नहीं है, तो इस स्थिति से निपटने के लिए कोई उपाय उपलब्ध नहीं है।
स्रोत – द हिन्दू