क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRAs) के लिए फ्रेमवर्क में संशोधन

क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRAs) के लिए फ्रेमवर्क में संशोधन

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों (CRAs) के लिए फ्रेमवर्क में संशोधन किया है।

सेबी ने जनवरी 2023 में CRAs पर एक ऑपरेशनल सर्कुलर जारी किया था । इस सर्कुलर को 1 फरवरी से लागू होना था। अब सेबी ने कई बदलाव के साथ एक नया सर्कुलर जारी किया है।

नए बदलाव निम्नलिखित हैं:

  • जारीकर्ताओं द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत न करने के मामलों में CRAs को मार्च के अंत तक एक विस्तृत नीति तैयार करने के लिए कहा गया है।
  • एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के MD या CEO और एजेंसी के भीतर ऐसा कोई भी व्यक्ति जिसकी व्यावसायिक जिम्मेदारियां हैं, वह एजेंसी की रेटिंग समितियों का सदस्य नहीं होगा।
  • CRA एक ऐसी कंपनी है, जो क्रेडिट रेटिंग प्रदान करती है । यह ऋण मांगने वालों की समय पर ब्याज भुगतान द्वारा ऋण चुकाने की क्षमता और डिफॉल्ट की आशंका के आधार पर रेटिंग देती है ।
  • CRISIL, ICRA, CARE आदि भारत में संचालित कुछ CRAs हैं ।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां) विनियम, 1999 सेबी को भारत में संचालित CRAs को विनियमित करने का अधिकार देता है।

CRAs का महत्त्व:

  • सरकारों को वैश्विक पूंजी बाजारों से धन उधार लेने में मदद करती हैं।
  • देश को एक लाभप्रद निवेश गंतव्य के रूप में इंगित करके विदेशी निवेश को आकर्षित करने में मदद करती हैं।
  • निवेशक सूचित निवेश निर्णय लेने के लिए कई विश्लेषणात्मक संसाधनों के भाग के रूप में इनका उपयोग करते हैं।

CRAs से जुड़ी समस्याएं:

  • बाजार में कुछ CRAs का प्रभुत्व है,
  • CRAs द्वारा की जाने वाली रेटिंग से जुड़ी पद्धतियों एवं प्रक्रियाओं में पारदर्शिता का अभाव है आदि ।

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • सेबी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (एक गैर-संवैधानिक निकाय जिसे संसद द्वारा स्थापित किया गया) है।
  • सेबी का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना एवं विनियमित करना है।
  • सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में हैं।
  • सेबी के अस्तित्व में आने से पहले पूंजीगत मुद्दों का नियंत्रक (Controller of Capital Issues) नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजी मुद्दे (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के तहत अधिकार प्राप्त थे।
  • अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत सेबी का गठन भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में किया गया था।
  • प्रारंभ में सेबी एक गैर-वैधानिक निकाय था जिसे किसी भी तरह की वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं थी।
  • सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से यह एक स्वायत्त निकाय बना तथा इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।

स्रोत – इकोनॉमिक्स टाइम्स

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