पिछड़े वर्गों में ‘क्रीमीलेयर’ का मामला
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने कहा किपिछड़े वर्गों में ‘क्रीमीलेयर’ के निर्धारण हेतु आर्थिक मानदंड ही एकमात्र आधार नहीं है।
- उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय एक याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया था। ज्ञातव्य है कि इस याचिका में हरियाणा सरकार द्वारा क्रीमीलेयर के लिए मानदंड तय करते समय केवल आर्थिक आधार पर पिछड़े वर्गों को उप-वर्गीकृत करने संबंधी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।
- यह अधिसूचना हरियाणा पिछड़े वर्ग (सेवाओं तथा शैक्षणिक संस्थाओं में दाखिलेमें आरक्षण) अधिनियम, 2016 के तहत जारी की गई थी। इसमें निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं।
- 6 लाख रुपये वार्षिक से अधिक आय वालों को ‘नवोन्नत वर्ग (क्रीमीलेयर)’ के अंतर्गत माना जाएगा। हालांकि, मूल रूप से, वर्ष 2016 के इस अधिनियम में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि “सरकार अधिसूचना द्वारा, सामाजिक, आर्थिक तथा ऐसे अन्य घटकों, जो उचित समझे, पर विचार करने के बाद, नवोन्नत वर्ग (क्रीमीलेयर) के रूप में पिछड़े वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को निकालने के लिए मानदंड तथा पहचान विनिर्दिष्ट करेगी।
- न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि यह अधिसूचना वर्ष 1992 के इंदिरा साहनी वाद के निर्णय में घोषित कानून का उल्लंघन करती है।
- न्यायालय ने रेखांकित किया कि पिछडे वर्ग के भीतर ‘क्रीमीलेयर’ का निर्धारण करने के लिए सामाजिक-शैक्षणिक आर्थिक और भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
अन्य मुद्दे
- क्रीमीलेयर से तात्पर्य OBC के तुलनात्मक रूप से अग्रणी, बेहतर शिक्षित और सामाजिक रूप से संपन्न सदस्यों से है।
- यह शब्द सत्तनाथन आयोग द्वारा वर्ष 1971 में प्रस्तावित किया गया था। इसने यह अनुशंसा की थी कि ‘क्रीमीलेयर’ को कोटा लाभ से बाहर रखा जाना चाहिए।
- इंदिरा साहनी वाद (1992) के निर्णय में, उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि OBC के बीच क्रीमीलेयर को कोटा लाभ से बाहर रखा जाएगा।
- वर्ष 2018 में संविधान पीठ के एक निर्णय के उपरांत, यह अवधारणा SC/ST समुदायों पर भी लागू होती है।
- केंद्र सरकार द्वारा OBCs में प्रति वर्ष 8 लाख रुपये से अधिक आय वाले सदस्यों को क्रीमीलेयरके रूप मेंपरिभाषित किया गया है।
स्रोत –इंडियन एक्सप्रेस