कोशिका से मुक्त डीएनए (cfDNA) से रोगों का पता लगाना आसान
हाल ही में दुनिया भर के शोधकर्ता ‘कोशिका से मुक्त डीएनए’ (cell-free DNA: cfDNA) को मानव रोगों को समझने और उनका निदान, निगरानी और रोग निदान में सुधार के लिए ज्ञान का उपयोग करने के लिए एक उपयोगी साधन मान रहे हैं।
कोशिका से मुक्त डीएनए (cell-free DNA: cfDNA)
- ज्ञातव्य हो कि मानव शरीर के जीनोम में अधिकांश डीएनए विशिष्ट प्रोटीन की सहायता से कोशिकाओं के अंदर बड़ी व्यवस्थित तरीके से पैक होते हैं, जो इन्हें ख़राब होने से बचाता है।
- लेकिन डीएनए के कुछ टुकड़े उनके कंटेनरों से ‘रिलीज़’ होकर बाहर आ जाते हैं, और कोशिका के बाहर, शरीर के तरल पदार्थ में मौजूद होते हैं।
- न्यूक्लिक एसिड के इन छोटे टुकड़ों को कोशिका से मुक्त डीएनए (cell-free DNA: cfDNA) के रूप में जाना जाता है।
- cfDNA मुख्य रूप से एपोप्टोसिस और नेक्रोसिस के माध्यम से कोशिकाओं से जारी होता है और संभवतः सक्रिय स्राव से भी।
- जब एक कोशिका मर रही हो और न्यूक्लिक एसिड का क्षरण हो रहा हो, तभी cfDNA` की स्थिति उत्पन्न होती है। cfDNA का अर्द्ध जीवन (half life) 16 मिनट से 2.5 घंटे तक होता है।
- cfDNA की मात्रा, आकार और स्रोत भी एक सीमा में भिन्न हो सकते हैं। इसके अलावा, cfDNA रिलीज विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं के साथ हो सकता है, जिनमें सामान्य विकास के लिए आवश्यक प्रक्रियाएं, कैंसर के विकास से संबंधित कुछ प्रक्रियाएं और कई अन्य बीमारियों से जुड़ी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
cfDNA के उपयोग:
भ्रूण की जांच में –
- cfDNA के सबसे व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले अनुप्रयोगों में से एक है; विशिष्ट गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं (specific chromosomal abnormalities) के लिए भ्रूण की जांच करना है। इसे नॉन -इनवेसिव प्रीनेटल परीक्षण के रूप में जाना जाता है।
- किफायती जीनोम-सीक्वेंस प्रणाली की उपलब्धता चिकित्सकों को भ्रूण डीएनए के अनुरूप cfDNA टुकड़ों को अनुक्रमित करने की अनुमति देगी।
कैंसर की जाँच –
- cfDNA का एक और उभरता हुआ उपयोग कैंसर का शीघ्र पता लगाने, निदान और उपचार में है।
- cfDNA के कई अन्य उपयोग भी हैं। इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि कोई शरीर प्रत्यारोपित अंग को क्यों अस्वीकार कर रहा है।
- ऐसी कुछ रिपोर्टें पहले ही आ चुकी हैं जिनमें सुझाव दिया गया है कि cfDNA का उपयोग अल्जाइमर रोग, न्यूरोनल ट्यूमर, स्ट्रोक, दर्दनाक मस्तिष्क की चोट और यहां तक कि टाइप 2 मधुमेह और गैर-अल्कोहल फैटी लीवर रोग जैसे चयापचय संबंधी विकारों के लिए बायोमार्कर के रूप में किया जा सकता है।
स्रोत – द हिन्दू