कोल्हापुरी गुड़ को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) का दर्जा प्राप्त

कोल्हापुरी गुड़ को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) का दर्जा प्राप्त

हाल ही में महारास्ट्र राज्य में निर्मित होने वाले कोल्हापुरी  गुड़ को भौगोलिक संकेतक (जीआई टैग) का दर्जा प्राप्त हो गया है।

कोल्हापुरी गुड क्या है ?

भारत के महाराष्ट्र राज्य में बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती है, इस वजह से यहाँ गुड और चीनी  का उत्पादन काफी अधिक होता है.महारास्ट्र में सर्वाधिक गुड का उत्पादन  कोल्हापुर जिले में होता है, एवं कोल्हापुर  गुड़ उत्पादन का देश में सबसे बड़ा केंद्र हैं।

कोल्हापुर में निर्मित होने वाल गुड़ न केवल भारत के अन्य हिस्सों में बल्कि यह यूरोप, मध्य-पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भी निर्यात किया जाता है.इसकी मुख्य वजह कोल्हापुरी गुड़ का गुणवत्ता और स्वाद के मामले में लाजवाब होना  है।

कोल्हापुरी चप्पल

इससे पहले महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर में निर्मित होने वाली विश्व प्रसिद्ध चप्पलों को भी भौगोलिक संकेतक का दर्जा मिल चुका है ।

क्या है भौगोलिक संकेतक

भौगोलिक संकेतक या जियोग्राफिकल इंडीकेशन शब्द का प्रयोग ऐसी वस्‍तुओं की पहचान दिलाने  (कृषि उत्पाद, प्राकृतिक वस्तुएँ या विनिर्मित वस्तुएँ आदि) जो किसी एक देश के एक  स्थान या क्षेत्र विशेष में उत्‍पन्‍न होती हैं के लिए होता है, भौगोलिक संकेतक का दर्जा उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।

यह दो प्रकार के होते हैं –

  • पहले प्रकार के भौगोलिक नामउद्भव के स्‍थान को प्रदर्शित करते हैंजैसे शैम्‍पेन, दार्जीलिंग आदि।
  • दूसरे गैर-भौगोलिक पारम्‍परिक नाम हैं जोउत्पादों का किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्धहोना दर्शाते हैं जैसे अल्‍फांसो, बासमती, रोसोगुल्ला आदि।
  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के अनुसार, कृषि उत्पादों, खाद्यान्न वस्तुओं, वाइन और स्पिरिट पेय, हस्तशिल्प वस्तुएं (हैंडीक्राफ्ट्स), मिट्टी से बनी मूर्तियां (टेराकोटा) और औद्योगिक उत्पाद से सम्बंधित उत्पादों को ही जीआई टैग दिया जा सकता है.
  • जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
  • डब्ल्यूटीओ समझौते के अनुच्छेद 22 (1) के तहत भौगोलिक संकेतकको परिभाषित किया गया है.भौगोलिक टैग के कारण उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिल जाता है.
  • भारत में भौगोलिक संकेतक के निगमन हेतु, भौगोलिक वस्तु संकेतक (पंजीकरण एवं सुरक्षा) अधिनयम, 1999 है जिसे सितंबर 2003 में पारित किया गया है, इसके तहत भारत में एक भौगोलिक संकेतक पंजीयक की नियुक्ति भी की जाती है .
  • पंजीयक को उसके काम में सहयोग करने के लिए केंद्र सरकार समय-समय पर अधिकारियों को उपयुक्त पदनाम के साथ नियुक्त करती है.
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद बना था।गौरतलब है कि भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये ही मान्य होता है। इसके बाद इसका पुनः नवीनीकरण कराया जा सकता है।

भौगोलिक संकेतक मिलने से लाभ

  • इससे किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पादों के अनधिकृत प्रयोग पर अंकुश लगता है औरउत्पाद को कानूनी संरक्षण मिलता है।
  • किसी भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित होने वाली वस्तुओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलती है, इसके द्वारा टूरिज्म और निर्यात को बढ़ावा देने में मदद मिलती है।

स्रोत – पी आई बी

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