कोयला आधारित विद्युत संयंत्र की चुनौतियाँ
हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार कोयला आधारित पुरानी विद्युत उत्पादन इकाइयों को कार्यमुक्त करने से 37,750 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है।
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंडवाटर-सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (CEEW-CEP) के एक अध्ययन के अनुसार भारत की कुल संस्थापित क्षमता 300 गीगावाट(GW) में से लगभग 5 गीगावाट ऊर्जा के उत्पादक कोयला आधारित विद्युत संयंत्र 25 वर्ष से अधिक- पुराने हैं। इन्हें प्राथमिकता के आधार पर सेवानिवृत्त किया जा सकता है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्षः
- पुराने हो चुके संयंत्र, जो विद्युत की एक यूनिट का उत्पादन करने के लिए अपने नए समकक्ष की तुलना में अधिक कोयले की खपत करते हैं, को बंद किया जाना चाहिए। इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने, देश की वायु को स्वच्छ करने तथा मृदा और जल प्रदूषण को कम करने में सहायता मिल सकती है।
- पुराने विद्युत उत्पादक संयंत्रों को बंद करने से 102 अरब रुपये की एकमुश्त लागत की बचत होगी। इस धनराशि को संचालन में बने रहने के लिए प्रदूषण नियंत्रण हेतु रेट्रोफिट्स (समय-समय पर रखरखाव) पर व्यय किया जा सकता है।
- अक्षम इकाइयों को बंद करने से नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा भंडारण, प्रणालीगत उन्नयन आदि मेंनिवेश के लिए अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे।
- कोयले से संचालित और लिग्नाइट आधारित ताप विद्युत संयंत्रों से मुख्यतः CO2, नाइट्रसऑक्साइड (NOX), सल्फर ऑक्साइड (SOX) और वायु-जनित अकार्बनिक कण जैसे फ्लाई ऐश, कार्बन युक्त पदार्थ (कालिख), निलंबित कणिकीय पदार्थ (SPM) तथा अन्य ट्रेसगैसों का उत्सर्जन होता है।
- ताप विद्युत् संयंत्र, भारत में कुल उत्पादित कोयले का लगभग 70% उपयोग कर रहे हैं।
कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों की दक्षता में सुधार के लिए सरकार द्वारा की गई पहलें: –
- अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट्स (UMPPs) के लिए सुपर क्रिटिकल तकनीक अनिवार्य की गई है।
- ‘सुपर क्रिटिकल’ पदावली का उपयोग विद्युत संयंत्रों के लिए किया जाता है, जब जल उच्च दबाव (22 मेगापास्कल) और तापमान (374 डिग्री सेल्सियस) के तहत अपने क्रांतिक बिंदु (Critical Point) तक पहुंच जाता है।
- इस बिंदु पर, जल को वाष्प में परिवर्तित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा कम हो जाती है। इस प्रकार, संयंत्र की दक्षता में वृद्धि करने हेतु उतनी ही मात्रा में जल कोगर्म करने के लिए कम कोयले का उपयोग किया जाता है।
- सभी विद्युत संयंत्रों के लिए प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकी स्थापित करने हेतु पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 में उत्सर्जन मानदंड अधिसूचित किए गए थे।
- राष्ट्रीय उन्नत ऊर्जा दक्षता मिशन (National Mission on Enhanced Energy Efficiency: NMEEE) के तहत, परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड (PAI) योजना।
स्रोत – द हिन्दू