कोणार्क सूर्य मंदिर (ओडिशा)
हाल ही में कोणार्क सूर्य मंदिर के भीतर अंग्रेजों द्वारा स्थायित्व के लिए प्रयोग की गयी रेत को हटाया जा सकता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण कोणार्क सूर्य मंदिर के सीलबंद सभागृह से रेत को सुरक्षित रूप से हटाने के लिए एक रोडमैप पर कार्य कर रहा है। इस सभागृह को जगमोहन के नाम से भी जाना जाता है।
इसे गिरने से बचाने के लिए 118 वर्ष पहले अंग्रेजों ने इसमें रेत भर दिया था।
सूर्य मंदिर, कोणार्क (ओडिशा) के बारे में:
- इसका निर्माण पूर्वी गंग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने 1238-1250 ई. में करवाया था। यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (AMASR) अधिनियम, 1958 के तहत संरक्षित है।
- यह 13वीं शताब्दी का कलिंग शैली का मंदिर है। यह पुरी और भुवनेश्वर के साथ ओडिशा के स्वर्ण त्रिभुजका हिस्सा है। यह सूर्य देव के रथ का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें सात घोड़ों द्वारा खींचे गए बारह जोड़ी पहिये आकाश की ओर अपनी गति को प्रदर्शित करते हैं।
मंदिर वास्तुकला की कलिंग शैलीः
- नागर शैली के तहत एक उपवर्ग के रूप में अभिनिर्धारित है। इसमें 2 भाग होते हैं- एक गर्भगृह (जिसे द्वंद्व कहा जाता है) जहां एक मूर्ति प्रतिष्ठापित की जाती है, और एक सभागृह (जगमोहन) जहां श्रद्धालु बैठते हैं।
- मुख्य मंदिर का भूतल लगभग सदैव चौकोर/वर्गाकार होता है। मंदिरों के बाहरी भाग को भव्य रूप से अलंकृत किया जाता है। उनके अंदरूनी भाग आमतौर पर अनलंकृत होते हैं। इनमें आमतौर पर चारदीवारी होती है।
भारत में अन्य प्रमुख सूर्य मंदिरः
- मध्य प्रदेश के उनाव में ब्राह्मण देव (बारमजू) मंदिर।
- गुजरात के मोढेरा में सूर्य मंदिर ।
- कटारमल सूर्य मंदिर (उत्तराखंड)।
- सूर्य पहाड़ मंदिर (असम)।
- दक्षिणार्क सूर्य मंदिर (बिहार)।
- सूर्यनकोविल (तमिलनाडु)।
- अरसवल्ली सूर्य नारायण मंदिर (आंध्र प्रदेश) आदि।
स्रोत – द हिन्दू