कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) द्वारा प्रस्तावित क्रॉस – बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी फ्रेमवर्क
हाल ही में कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) ने प्रस्तावित क्रॉस-बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी फ्रेमवर्क पर लोगों की राय आमंत्रित की है।
क्रॉस-बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी उन परिस्थितियों को दर्शाता है, जिनमें एक दिवालिया देनदार के पास एक से अधिक देशों में संपत्ति और/ या लेनदार होते हैं।
वर्तमान में, इसका निराकरण दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की धारा 234 और 235 के तहत किया जाता है। धारा 234, केंद्र सरकार को द्विपक्षीय समझौते करने का अधिकार प्रदान करती है। धारा 235 के तहत विदेशी न्यायालयों को अनुरोध पत्र जारी करने वाले न्याय निर्णयन प्राधिकारियों का प्रावधान किया गया है।
प्रस्तावित ढांचे के तहत प्रमुख प्रावधान
- क्रॉस-बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी के प्रावधानों का कॉरपोरेट से परे कॉर्पोरेट देनदारों के व्यक्तिगत गारंटी प्रदाताओं तक विस्तार करना।
- राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (NCL) और ऋण वसूली अधिकरणों (DRI) की सभी पीठेक्रॉस-बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी के तहत आवेदनों पर निर्णय सुनाएंगी।
- पूर्व-निर्धारित दिवालिया समाधान प्रक्रिया का अपवर्जन।
क्रॉस-बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी कानून की आवश्यकताः
- वर्तमान ढांचे के लिए द्विपक्षीय संधियों को अंतिम रूप देने की आवश्यकता है। इसके लिए लंबी अवधि की वार्ता की आवश्यकता होती है और यह विदेशी निवेशकों के लिए अनिश्चितता सृजित कर सकती है।
- जहां कई क्षेत्राधिकार शामिल हैं, प्रत्येक देश के साथ द्विपक्षीय संधियों को लागू करना होगा। इससे कानूनी और प्रक्रियात्मक जटिलताएं उत्पन्न होंगी।
- जब भारतीय देनदार की संपत्ति एक विदेशी अधिकार क्षेत्र में स्थित है तथा जिसके साथ कोई द्विपक्षीय समझौता नहीं है, तो ऐसी स्थिति में कोई मार्गदर्शन/उपाय उपलब्ध नहीं है।
स्रोत – द हिन्दू