केरल के पांच कृषि उत्पाद को भौगोलिक संकेतक ( GI) दर्जा प्राप्त

केरल के पांच कृषि उत्पाद को भौगोलिक संकेतक ( GI) दर्जा प्राप्त

हाल ही में, केरल के निम्नलिखित कृषि उत्पाद – अट्टापडी अट्टुकोम्बु अवारा, अट्टापडी थुवारा, ओनाटुकारा एलु, कंथल्लूर-वट्टावदा वेलुथुल्ली और कोडुंगल्लूर पोट्टुवेलारी को GI टैग प्रदान किया गया है

नवीनतम GI टैग के बारे में मुख्य बिंदु

  • अट्टापडी अटुकोम्बु अवरा (बीन्स) : इसकी खेती अट्टापडी ( पलक्कड़) में की जाती है। इसमें उच्च एंथोसायनिन पाया जाता है, जो इसे बैंगनी रंग प्रदान करता है। इसमें मधुमेहनिवारक गुण पाए जाते हैं। यह हृदय रोगों से बचाती है।
  • अट्टापडी तुवारा (लाल चना) : इसमें कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर की अधिक मात्रा पाई जाती है। इसके बीज सफेद आवरण वाले होते हैं। अन्य लाल चने की तुलना में अट्टापडी थुवारा के बीज बड़े होते हैं और बीज का वज़न अधिक होता है।
  • ओनाटुकारा एलु (तिल) : इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, कैल्शियम और मैग्नीशियम प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। इसमें अपेक्षाकृत उच्च एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं । यह असंतृप्त वसा से भी युक्त है। इस कारण यह हृदय रोगियों के लिए फायदेमंद है।
  • कंतल्लूर वट्टावडा वेलुथुल्ली (लहसुन) : इसकी खेती इडुक्की में की जाती है। इसमें उच्च मात्रा में सल्फाइड, फ्लेवोनोइड्स और प्रोटीन मौजूद हैं। यह एलिसिन से भरपूर होता है, जो सूक्ष्मजीवों से होने वाले संक्रमण, ब्लड शुगर, कैंसर आदि के खिलाफ प्रभावी है।
  • कोडुंगल्लूर पोट्ट्टुवेल्लरी (स्नैप मेलन) : इसकी खेती कोडुंगल्लूर और एर्नाकुलम के कुछ हिस्सों में की जाती है तथा इसकी उपज गर्मियों में प्राप्त होती है। इसमें उच्च मात्रा में विटामिन सी, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फाइबर और वसा विद्यमान है ।

भौगोलिक संकेतक (GI) के बारे में

  • भौगोलिक संकेतक (GI) विशेष भौगोलिक उत्पत्ति / पहचान वाले उत्पादों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक चिह्न है । ऐसे उत्पाद अपनी मौलिक उत्पत्ति के कारण विशेष गुणों से युक्त या ख्याति प्राप्त होते हैं ।
  • भौगोलिक संकेतक दर्जा औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिए पेरिस कन्वेंशन का हिस्सा हैं।
  • भारत में, GI पंजीकरण को ‘वस्तुओं का भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 द्वारा प्रशासित किया जाता है।

लाभ :

  • यह भारत में भौगोलिक संकेतों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, दूसरों द्वारा पंजीकृत भौगोलिक संकेतों के अनधिकृत उपयोग को रोकता है।
  • यह भौगोलिक क्षेत्र में उत्पादित/निर्मित वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।

स्रोत – द हिन्दू

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