भारत में किसानों की आय पर कर लगाने की आवश्यकता
कुछ आर्थिक विशेषज्ञों का मत है कि किसी की आय निर्धारित सीमा से अधिक होने पर उसे आयकर का भुगतान अवश्य करना चाहिए, भले ही वह किसान ही क्यों न हो।
इस कदम के निम्नलिखित लाभ हैं:
करदाताओं की संख्या में वृद्धि करने और कुल करों में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा बढ़ाने में मदद मिलेगी ।
किसानों के खातों का बेहतर रिकॉर्ड सुनिश्चित करके कर चोरी को कम किया जा सकता है।
सभी राज्यों में एकीकृत कराधान सुनिश्चित करके ऋणों को औपचारिक स्वरूप दिया जा सकता है।
आयकर एक प्रत्यक्ष कर है। इसे सरकार अपने नागरिकों की आय पर लगाती है ।
आयकर अधिनियम (1961) की धारा 10 (1) कृषि आय को कर मुक्त घोषित करती है।
कृषि राज्य सूची का विषय है। राज्य सूची की प्रविष्टि 46 के अनुसार राज्य सरकारें ही कृषि कर लगा सकती हैं ।
कर छूट कई विसंगतियों को जन्म देती है, जिसे कई समितियों ने उजागर भी किया है।
इन समितियों में प्रत्यक्ष कर पर केलकर टास्क फोर्स 2002, कर प्रशासन सुधार आयोग 2014 आदि शामिल हैं।
कुछ प्रमुख विसंगतियां निम्नलिखित हैं:
व्यक्ति और कॉर्पोरेट क्षेत्र गैर-कृषि आय को कृषि आय के रूप में दर्शा कर आयकर की चोरी करते हैं ।
इससे कराधान में कर निष्पक्षता सुनिश्चित करने वाले क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर समानता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है।
क्षैतिज समानता सिद्धांत के अनुसार समान आय वाले करदाताओं को समान कर का भुगतान करना चाहिए।
ऊर्ध्वाधर समानता के लिए यह आवश्यक है कि कर दायित्व आय के अनुपात में अलग-अलग हों । राज्यों द्वारा जारी किए जाने वाले किसान प्रमाण-पत्र की विश्वसनीयता में कमी आती है ।
किसानों पर कर लगाने में चुनौतियां :
यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है,
इससे किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, क्योंकि भारत में ज्यादातर लघु और सीमांत किसान हैं,
भूमि के स्वामित्व पर स्पष्टता की कमी है,
फसल उत्पादन में अत्यधिक उतार-चढ़ाव देखा जाता है आदि ।
स्रोत – इंडियन एक्सप्रेस