हाल ही मेंउच्चतम न्यायालय (SC) ने स्पष्ट किया है कि मणिपुर के राज्यपाल, चुनाव आयोग (EC) की राय पर कार्यवाही में विलंब नहीं कर सकते है। (कार्यवाही में विलंब नहीं कर सकते राज्यपाल)
- हाल ही में एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनवाई की जा रही है। यह याचिका विधि-विरुद्ध तरीके से कथित रूप से लाभ का पद (office of profit) धारण करने वाले मणिपुर के 12 विधायकों की निरर्हता पर राज्य के राज्यपाल द्वारा निर्णय लेने में विलंब करने से संबंधित है।
- ध्यातव्य है कि चुनाव आयोग ने जनवरी 2021 को ही राज्यपाल को अपनी अनुशंसाएं प्रेषित कर दी थी।
- लाभ के पद को संविधान या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम,1951 (RPA) में परिभाषित नहीं किया गया है। किंतु विभिन्न न्यायालयों ने इसकी व्याख्या कुछ कर्तव्यों के साथ एक विशिष्ट पद के रूप में की है, जो लगभग सार्वजनिक प्रकृति के हैं।
- सार यह है कि विधायकों को वर्तमान सरकार के प्रति किसी भी उत्तरदायित्व के बिना स्वतंत्र रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने की अनुमति दी जाती है।
- इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय का अवलोकन ऐसे पद को लाभ के पद के रूप में संदर्भित करता है, यदि उसमें अग्रलिखित मानदंड शामिल हैं, यथा- सरकार नियुक्ति प्राधिकारी है, सरकार के पास नियुक्ति को निरस्त करने की शक्ति है, या सरकार द्वारा पारिश्रमिक निर्धारित किया गया है इत्यादि।
- इसके अतिरिक्त, संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम,1959 में ऐसे कई पद सूचीबद्ध हैं, जिन्हें निरर्हता से छूट प्रदान की गई है।
- संविधान के अनुच्छेद 102(1) और अनुच्छेद 191(1) में, एक सांसद या विधायक को केंद्र या राज्य सरकार के तहत कोई भी लाभ का पद धारण करने से प्रतिबंधित करने का प्रावधान किया गया है।
- इसके अतिरिक्त RPA, 1951 के अंतर्गत, लाभ का पदधारण करना निरर्हता का आधार है।
स्रोत – द हिंदू