कर्नाटक सरकार, मंदिरों को राज्य के नियंत्रण से मुक्त करनेके लिए एक कानून बनाने पर विचार कर रही है।औपनिवेशिक शासन के दौरान वर्ष 1817 में बंगाल और मद्रासप्रेसीडेंसियों में धार्मिक संस्थानों पर राज्य के नियंत्रण की प्रथा आरम्भ हुई थी।
वर्ष 1925 में, मद्रास रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट्स एक्ट ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण के अधीन कर दिया था।
हालांकि, इस कदम का अल्पसंख्यक समुदायों ने कठोर विरोध किया था। इसके कारण उनके पूजा स्थलों को इस अधिनियम के दायरे से बाहर कर दिया गया था। इस प्रकार केवल हिंदू मंदिर ही इस अधिनियम के अधीन रह गये थे।
सरकारी नियंत्रण के पक्ष में तर्क
- मंदिरों से उच्च मात्रा में राजस्व की प्राप्ति।
- सरकारी निगरानी वित्तीय अनियमितताओं को रोकसकती है।
- सामाजिक सुधार जैसे वंशानुगत पुजारी की नियुक्ति कीपरंपरा को चुनौती देना, सार्वजनिक मंदिरों में बिना किसीभेदभाव के प्रवेश सुनिश्चित करना इत्यादि।
सरकारी नियंत्रण के विरुद्ध तर्क :
- मंदिरों का राजस्व समाज की संपत्ति है। इसका उपयोग मंदिरों के विकास और सामाजिक कार्यों के लिए कियाजाना चाहिए।
- यह आरोप है कि मंदिर के राजस्व का उपयोग अन्य धार्मिकसंस्थानों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। , यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, क्योंकि अन्य धार्मिक संस्थान किसी भी समान सरकारी है अधिनियम द्वारा शासित नहीं हैं।
- सरकार का मंदिरों की पुरातात्विक प्रकृति को बनाए रखनेका निराशाजनक रिकॉर्ड है।
स्रोत –द हिन्दू