राज्य के स्वामित्व वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का कर्ज राज्यों की FRBM सीमा के अधीन
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने राज्यों को सूचित किया है कि राज्य के स्वामित्व वाले उपक्रमों, स्पेशल परपज व्हीकल या एजेंसियों द्वारा बाजार से लिए गए उधार, राज्यों की राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) सीमा के तहत होंगे।
ये उधार राजस्व घाटे और राजकोषीय घाटे को प्रभावित करते हैं। इसलिए, ऐसे उधार लेने के लिए संविधान के अनुच्छेद 293(3) के तहत केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होती है।
अनुच्छेद 293(3) यह प्रावधान करता है कि यदि राज्य सरकारों पर भारत सरकार का ऋण बकाया है, तो उन्हें नए ऋण लेने के लिए केंद्र की अनुमति लेने की आवश्यकता होती है।
सभी राज्यों ने 12वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार अपने FRBM अधिनियम लागू किये हैं। इस अधिनियम के अनुपालन की निगरानी संबंधित राज्य विधानमंडल करता है।
प्रत्येक वित्तीय वर्ष की शुरुआत में केंद्र सरकार प्रत्येक राज्य की सामान्य निवल उधार सीमा (Net Borrowing Ceiling: NBC) तय करती है।
वित्त वर्ष 2022-23 के लिए राज्यों की निवल उधार सीमा राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) की 3.5% निर्धारित की गई है। इसके अलावा, विद्युत् क्षेत्र में सुधारों की शर्त पर 0.5% की अतिरिक्त उधार सीमा भी दी गयी है।
FRBM अधिनियम, 2003:
- यह राजकोषीय नियम निर्धारित करता है। यह सरकार के राजकोषीय अनुशासन को बढ़ावा देता है।
- RBM अधिनियम को अगस्त 2003 में लागू किया गया तथा अधिनियम को लागू करने के नियमों को जुलाई 2004 में अधिसूचित किया गया था।
- FRBM का उद्देश्य केंद्र सरकार को राजकोषीय प्रबंधन तथा दीर्घकालिक वृहद-आर्थिक स्थिरता में अंतर-पीढ़ीगत समता (Inter-generational equity) सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार बनाना है।
- अधिनियम केंद्र सरकार के ऋण तथा राजकोषीय घाटे की ऊपरी सीमा को निर्धारित करता है। इसने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3% तक सीमित कर दिया।
राजकोषीय घाटाः यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार के कुल प्राप्त राजस्व और कुल व्यय के बीच के अंतर को दर्शाता है।
राजस्व घाटाः यह तब होता है, जब राजस्व की वास्तविक राशि और/या व्यय की वास्तविक राशि बजटीय राजस्व एवं व्यय के अनुरूप नहीं होती है।
स्रोत –द हिन्दू