साइबर स्पेस संबंधी चुनौतियों के लिए ‘कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग्स’ का निर्माण
हाल ही में साइबर स्पेस संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए सेना “कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग्स (CCOSW)” संचालित करेगी ।
- CCOSWs शत्रुओं की बढ़ती युद्ध क्षमताओं से उत्पन्न साइबर स्पेस संबंधी सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए भारतीय सेना की संरचनाओं की सहायता करेगा।
- CCOSWs नेटवर्क्स की सुरक्षा करेगा और साइबर डोमेन में तैयारी के स्तर को बढ़ाएगा ।
- सेना विशिष्ट प्रौद्योगिकियों को अपनाने और इस क्षेत्रक में अपनी सुरक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिए ‘लीड डायरेक्टोरेट्स’ तथा ‘टेस्ट बेड’ फॉर्मेशन भी नामित करेगी ।
साइबर सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा से कैसे जुड़ी हुई है ?
- साइबर स्पेस ग्रे-जोन वारफेयर और पारंपरिक अभियानों, दोनों स्थितियों में सैन्य क्षेत्रक की एक आवश्यक क्षमता के रूप में उभरा है ।
- कई देशों ने साइबर युद्ध से संबंधित अपनी स्वयं की रणनीतियां बनाई हैं, जो युद्ध के मैदान में परिणामों को बदलने की क्षमता रखती हैं।
- शत्रु अति-महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं जैसे कि बांध, बिजली और ऊर्जा प्रतिष्ठानों, बैंकिंग व वित्तीय सेवाओं आदि पर साइबर हमला कर सकते हैं।
- प्रौद्योगिकी के उपयोग और सरकार द्वारा डिजिटल प्रणालियों को बढ़ावा देने के कारण डिजिटल रूप से सुभेद्य प्लेटफॉर्म्स पर हमले बढ़ रहे हैं।
प्रमुख चुनौतियां:
- भारत इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए आयात पर निर्भर है;
- अलग-अलग एजेंसियों के बीच समन्वय का अभाव है;
- पर्याप्त अवसंरचना और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी है;
- अभी भी देश की बड़ी आबादी डिजिटल रूप से निरक्षर है आदि ।
सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें –
- वर्ष 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति घोषित की गई थी ।
- साइबर सुरक्षा बढ़ाने के लिए फ्रेमवर्क अपनाया गया है।
- भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) और राष्ट्रीय महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (NCIIPC) की स्थापना की गई है।
स्रोत – द हिन्दू