ओडिशा में वनाग्नि की सर्वाधिक घटनाएं दर्ज
हाल ही में भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के एक सर्वे के अनुसार ओडिशा में सात दिनों में वनाग्नि की 542 घटनाएं दर्ज की गई हैं।
- FSI की अग्नि चेतावनी प्रणाली के अनुसार, सिमिलिपाल टाइगर रिज़र्व सहित ओडिशा के कई जंगलों से बड़े पैमाने पर वनाग्नि की सूचना मिली है।
- FSI की यह अग्नि चेतावनी सुओमी नेशनल पोलर – ऑर्बिटिंग पार्टनरशिप (SNPP) पर आधारित है।
- वनाग्नि को वन, घास के मैदान जैसे प्राकृतिक तंत्रों में वनस्पतियों के किसी भी अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन या जलने के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
- वनाग्नि प्राकृतिक ईंधन (जैसे सूखी घास) के माध्यम से प्रज्वलित होती है तथा पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे वायु, स्थलाकृति आदि) के आधार पर फैलती है।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, ओडिशा में नवंबर 2020 और जून 2021 के बीच वनाग्नि की 51,968 घटनाएं दर्ज की गई, जो कि भारत में सबसे अधिक है।
वनाग्नि के कारण-
- आकाशीय बिजली, विशेष रूप से “तप्त आकाशीय बिजली“ : तप्त आकाशीय बिजली या लॉन्ग कंटीन्यूइंग करंट (LCC) आकाशीय बिजली का डिस्चार्ज है। इसमें 40 मिलीसेकंड से अधिक समय के लिए निरंतर विद्युत का प्रवाह होता रहता है।
- अत्यधिक गर्मी और शुष्कता: वृक्षों की शाखाओं की आपस में रगड़ से उत्पन्न घर्षण के कारण आग लग जाती है ।
- मानव जनित कारकों में निम्नलिखित शामिल हैं: जंगल में फेंकी गई सिगरेट बट से पैदा हुई चिंगारी, लापरवाही से फेंकी गई जलती हुई माचिस की तीली, जानबूझकर आग लगाना आदि ।
वनाग्नि से बचाव के लिए उठाए गए कदम –
- राष्ट्रीय वनाग्नि कार्य योजना (NAPFF), 2018 तैयार की गई है।
- वनाग्नि के संबंध में तुरंत जानकारी प्राप्त करने के लिए FSI वन अग्नि जियो – पोर्टल लॉन्च किया गया है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत वन्यजीव अभयारण्यों में आग लगाने पर रोक लगाई गई है।
स्रोत – हिन्दुस्तान टाइम्स