ओजोन क्षरण पर वैज्ञानिक मूल्यांकन पैनल रिपोर्ट (Scientific Assessment of Ozone Depletion: 2022 ) जारी
हाल ही में ओजोन क्षयकारी पदार्थों पर मॉन्ट्रियल के लिए संयुक्त राष्ट्र समर्थित वैज्ञानिक मूल्यांकन पैनल रिपोर्ट (Scientific Assessment of Ozone Depletion: 2022) जारी की गई है।
प्रत्येक चार साल में प्रकाशित होने वाली इस रिपोर्ट में प्रतिबंधित ओजोन क्षयकारी पदार्थों के लगभग 99% के चरणबद्ध उपयोग की समाप्ति की पुष्टि की गई है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें–
- नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओजोन परत की रक्षा करने में सफल रहा है, जिससे ऊपरी समताप मंडल में ओजोन परत की उल्लेखनीय रिकवरी हुई है और सूर्य से हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरणों का मानव पर से खतरा कम हुआ है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि कार्रवाई संबंधी वर्तमान नीतियां जारी रहती हैं, तो ओजोन परत के अंटार्कटिक के ऊपर लगभग 2066 तक, आर्कटिक के ऊपर 2045 तक और शेष विश्व के ऊपर 2040 तक 1980 के ओजोन स्तर (ओजोन छिद्र के प्रकट होने से पहले) को प्राप्त करने की उम्मीद है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में वर्ष 2016 के किगाली संशोधन के तहत हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध रूप से कम करना जरुरी है।
- HFCs सीधे तौर पर ओजोन को नष्ट नहीं करते हैं, लेकिन ये जलवायु परिवर्तन के लिए शक्तिशाली गैसें हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि किगाली संशोधन के अनुपालन से वर्ष 2100 तक 3-0.5°C वार्मिंग से बचा जा सकता है।
- पहली बार, वैज्ञानिक मूल्यांकन पैनल ने समताप मंडल में एरोसोल को कृत्रिम रूप से प्रवेश कराकर ओजोन पर संभावित प्रभावों की जांच की गयी है।
- इस तकनीक को स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (stratospheric aerosol injection : SAI) के रूप में जाना जाता है, जो एक जियोइंजीनियरिंग तकनीक है।
- पैनल ने चेतावनी दी है कि SAI के अनपेक्षित परिणाम “समतापमंडलीय तापमान, सर्कुलेशन और ओजोन उत्पादन और विनाश” दर को भी प्रभावित कर सकते हैं।
ओजोन परत–
अधिकांश वायुमंडलीय ओजोन पृथ्वी की सतह से लगभग 9 से 18 मील (15 से 30 किमी) ऊपर, समताप मंडल में एक परत में केंद्रित है और सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचने वाले हानिकारक पराबैंगनी विकिरण की मात्रा को कम करती है।
ओजोन क्षयकारी पदार्थ (ozone-depleting potential: ODP)
क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFCs), हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन(HCFCs), ड्रोब्रोमोफ्लोरोकार्बन (HBFCs), हैलोन, मिथाइल ब्रोमाइड, कार्बन टेट्राक्लोराइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म ।
वियना कन्वेंशन–
ओजोन परत के संरक्षण के लिए वियना कन्वेंशन को 22 मार्च 1985 को 28 देशों द्वारा अपनाया और हस्ताक्षरित किया गया था। सितंबर 1987 में, इसने ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का मसौदा तैयार किया।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल– 1987
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol), ओजोन परत के संरक्षण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जिसमें मानव निर्मित रसायनों के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाता है, इन्हें ओजोन क्षयकारी पदार्थ (ODP) कहा जाता है।
- स्ट्रेटोस्फेरिक की ओजोन पर्त मानव और पर्यावरण को सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों के हानिकारक स्तरों से बचाती है।
किगाली संशोधन (Kigali Amendment)
- किगाली संशोधन को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के लिए अक्टूबर, 2016 में रवांडा के किगाली में आयोजित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक के दौरान अंगीकृत किया गया था।
- किगाली संशोधन के तहत; मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकार हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन और खपत को कम कर देंगे, जिसे आमतौर पर HFCs के रूप में जाना जाता है।
- बता दें कि हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFCs) को क्लोरोफ्लोरोकार्बन के गैर-ओजोन क्षयकारी विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
- HFC स्ट्रेटोस्फेरिक ओजोन परत को नुकसान तो नहीं पहुंचाता है लेकिन यह ग्लोबल वार्मिंग अधिक योगदान देता है, जिसका जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इसलिए हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके समाप्त करने का किगाली समझौता किया गया है।
भारत-मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
भारत 19 जून, 1992 को ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक पक्षकार बन गया था और तभी से भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधन की पुष्टि की है।
स्रोत – द हिन्दू