ऑपरेशन ‘स्काईलाइट‘
हाल ही में सेना ने उपग्रह आधारित प्रणालियों के लचीलेपन का परीक्षण करने के लिए एक ‘स्काईलाइट’ अभ्यास आयोजित किया है ।
भारतीय सेना ने कथित तौर पर अपनी उपग्रह-आधारित प्रणाली की ऑपरेशनल तैयारी के लिए एक अभ्यास आयोजित किया है।
- संघर्ष के समय जमीनी संचार प्रणाली बाधित हो जाने पर उपग्रह-आधारित प्रणालियां संचार क्षमताओं के लिए लचीलापन प्रदान करती हैं।
- भारतीय वायुसेना और नौसेना के विपरीत, थल सेना के पास वर्तमान में कोई समर्पित उपग्रह नहीं है।
- वर्तमान में, सेना GSAT-7A की संचार क्षमताओं का 30% उपयोग कर रही है।
- रक्षा अधिग्रहण परिषद ने सेना की ऑपरेशनल क्षमताओं को बढ़ाने के लिए GSAT-7B उपग्रह के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की है।
- GSAT-7 श्रृंखला के उपग्रह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो/ISRO) द्वारा विकसित उन्नत उपग्रह हैं। ये रक्षा सेवाओं की संचार जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित है
- GSAT-7 उपग्रह को वर्ष 2013 में प्रक्षेपित किया गया था। इसका उपयोग मुख्य रूप से भारतीय नौसेना अपनी संचार आवश्यकताओं के लिए करती है।
- यह नौसेना को एक सुरक्षित और रियल टाइम संचार लिंक स्थापित करने में मदद करता है।
- GSAT 7A को वर्ष 2018 में प्रक्षेपित किया गया था।
- यह भारतीय वायु सेना के ग्राउंड रडार स्टेशनों, एयरबेस और एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयरक्राफ्ट (AEW&C) के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ाने में मदद करता है।
- GSAT-7B मुख्य रूप से थल सेना की संचार जरूरतों को पूरा करेगा। यह सीमावर्ती क्षेत्रों में सेना को अपनी निगरानी बढ़ाने में मदद करेगा।
स्रोत –द हिन्दू