ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म (OBP)
हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म (OBPs) प्रदाताओं के लिए विनियामक ढांचा प्रस्तुत किया है।
- सेबी के अनुसार OBP एक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज से अलग एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है। इसमें सूचीबद्ध या भविष्य में सूचीबद्ध होने वाली ऋण प्रतिभूतियां उपलब्ध होती हैं और इनका लेनदेन किया जाता है।
- बांड्स इंडिया, गोल्डनपाई आदि OBP के प्रमुख उदाहरण हैं।
- नए नियमों के तहत, OBP को सेबी से स्टॉक ब्रोकर होने का पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा। इसके अलावा, उन्हें डेटा गवर्नेस भी सुनिश्चित करना होगा ।
इन नियमों की जरुरत क्यों पड़ी?
- OBPs का विनियमन सेबी नहीं कर रही थी। उनमें से अधिकतर का संचालन फिनटेक कंपनियां कर रही थीं।
- OBPs गैर-संस्थागत निवेशकों को बॉण्ड बाजार तक पहुंचने का अवसर प्रदान करते हैं। इसके लिए पारदर्शिता सुनिश्चित करना जरूरी है।
बॉण्ड क्या होता है?
- बॉण्ड एक ऋण लिखत (Instrument) होता है। इसके द्वारा एक निवेशक आमतौर पर किसी कॉर्पोरेट या सरकार को एक निश्चित अवधि के लिए धन उधार देता है। यह उधार अलग-अलग ब्याज दरों या निश्चित ब्याज दर पर दिया जाता है।
- बॉण्ड का उपयोग कंपनियां, नगरपालिकाएं, राज्य और संप्रभु सरकारें धन जुटाने के लिए करती हैं। बॉण्ड लंबी अवधि के लिए उधार प्रदान करते हैं।
- दूसरी ओर, मुद्रा बाजार में कम अवधि के लिए उच्च गुणवत्ता वाली ऋण प्रतिभूतियों को उधार दिया जाता है और लिया जाता है। इन प्रतिभूतियों की औसत परिपक्वता अवधि एक वर्ष या उससे कम होती है।
बॉण्ड के प्रकार
- फिक्स्ड रेट बॉण्ड : ऐसे बॉण्ड की पूरी अवधि के दौरान ब्याज दर निश्चित होती है।
- फ्लोटिंग रेट बॉण्ड: वर्तमान बाजार संदर्भ दर के अनुसार ब्याज दर घटती-बढ़ती (कूपन) रहती है।
- शून्य ब्याज दर बॉण्ड: इसमें निवेशकों को कोई नियमित ब्याज प्राप्त नहीं होता है। इसमें जारीकर्ता बॉण्ड धारकों को केवल मूलधन का भुगतान करते हैं।
- मुद्रास्फीति–सूचकांकित बॉण्ड (Inflation-indexed bonds): इसमें कूपन भुगतान को मुद्रास्फीति के साथ समायोजित किया जाता है। इसके लिए भुगतानों को कुछ मुद्रास्फीति संकेतकों से जोड़ा जाता है।
स्रोत – द हिन्दू