ऑनलाइन चुनाव प्रचार अभियान (ई-कैम्पेनिंग) संबंधी अधिदेश
निर्वाचन आयोग का सोशलमीडियाकंपनियों के साथ ऑनलाइन चुनाव प्रचार अभियान (ई-कैम्पेनिंग) संबंधी अधिदेश जारी ।
हाल ही में, देश में जारी महामारी के प्रकोप और संबंधित स्वास्थ्य जोखिमों के कारण, निर्वाचन आयोग ने आगामी राज्य विधानसभा चुनावों के लिए 15 जनवरी तक भौतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही, आयोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्स के माध्यम से वर्चुअल अभियानों की अनुमति प्रदान की है।
फेसबुक, यूट्यूब आदि प्लेटफॉर्स पर अरबों की संख्या में यूजर्स के साथ सोशल मीडिया, चुनाव अभियानों का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनकर उभरा है।
ई-कैम्पेनिंग के लाभ
- नेताओं और मतदाताओं के बीच प्रत्यक्ष संचार के माध्यम से खुले संवाद को बढ़ावा देना।
- चुनाव प्रचार से परे संबंध स्थापित करना अर्थात् नीतियों से लेकर निजी जीवनके सभी पक्षों की जानकारी साझा करना। इससे मतदाताओं को भी सीधे संपर्क का विकल्प प्राप्त होता है।
- समान अवसर और व्यापक पहुंच प्रदान करके राजनीति में नए उम्मीदवारों को लाभान्वित करना।
संबंधित चिंताएं
- निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध सीमित संसाधनों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्स की विविधता के कारण ई-अभियान की निगरानी कठिन कार्य है।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्स एक विशिष्ट दल का पक्ष ले सकते हैं। वे अपने एल्गोरिदम के माध्यम से एक राजनीतिक दल के कंटेंट को दूसरे दलों केकंटेंट की तुलना में अधिक महत्व दे सकते हैं।
- सोशल मीडिया पर पहुंच बढ़ाने के लिए धन और संपर्कों के महत्व के कारण असमानता का जोखिम बढ़ गया है।
अन्य चिंताएं: राजनीतिक दलों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले प्रॉक्सी (छद्म) उम्मीदवारों की निगरानी करने में कठिनाई; घृणा फैलाने वाले अभियानों, फेकन्यूज व उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता पर नियंत्रण आदि।
भारत में वर्तमान विनियमन
- उम्मीदवारों को नामांकन के समय सोशलमीडिया अकाउंट का प्रमाणिक विवरण प्रस्तुत करना होता है। राजनीतिक विज्ञापनों के पूर्व-प्रमाणन के नियम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्स पर भी लागू होते हैं।आदर्श आचार संहिता के प्रावधान पोस्ट किए गए कंटेंट पर भी लागू होते हैं।
- विज्ञापन पर अंतिम व्यय विवरण में सोशल मीडिया व्यय को भी शामिल करना होता है। भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा निगरानी के लिए एक सोशल मीडिया सेल का गठन किया गया है।
स्रोत –द हिन्दू