एम्बरग्रीस

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एम्बरग्रीस

एम्बरग्रीस

हाल ही में मुंबई पुलिस ने 5 लोगों को लगभग नौ किलो एम्बरग्रीस (Ambergris) नामक एक पदार्थ की तस्करी करते हुए गिरफ्तार किया है।

एम्बरग्रीस क्या है ?

  • ग्रे एम्बर या एम्बरग्रीस एक फ्रांसीसी शब्द है, यह प्रायः व्हेल की उल्टी (Vomit) से निकलता है। यह ठोस और मोम जैसा पदार्थ है, जो ‘स्पर्म व्हेल’ की आँतों में उत्पन्न होता है। स्पर्म व्हेल में से केवल 1 प्रतिशत का ही एम्बरग्रीस का उत्पादन होता हैं।
  • रासायनिक तौर पर एम्बरग्रीस में एल्कलॉइड, एसिड और एंब्रेन नामक एक विशिष्ट यौगिक उपस्थित होता है, यह कोलेस्ट्रॉल के समान होता है। यह पदार्थ जल निकाय की सतह के ऊपर तैरता है और कभी-कभी तट के समीप आकर एकत्रित हो जाता है।
  • यह अत्यधिक मूल्यवान होता है, जिसके कारण इसे तैरता हुआ सोना कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक किलो एम्बरग्रीस की कीमत एक करोड़ रुपए है।

प्रयोग:

  • इसका प्रयोग इत्र बाज़ार में खासतौर पर कस्तूरी जैसी सुगंध उत्पन्न करने के लिये किया जाता है।
  • दुबई जैसे देशों में इसकी अधिक मांग है क्योंकि यहाँ इत्र का एक बड़ा बाज़ार है ।
  • प्राचीन मिस्र के लोग इसका प्रयोग धूपके रूप में करते थे। ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग कुछ पारंपरिक औषधियों और मसालों के रूप में भी किया जाता है।

तस्करी:

  • इसका अत्यधिक कीमती होने के कारण यह विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में यह तस्करों के निशाने पर रहा है।
  • विदित हो कि ‘स्पर्म व्हेल’ एक संरक्षित प्रजाति है, इसलिये व्हेल के शिकार आदि पर रोक है। जबकि तस्करों को व्हेल के पेट से एम्बरग्रीस प्राप्त करने के लिये इसका मारना पढता है।

स्पर्म व्हेल (Sperm Whale):

  • स्पर्म व्हेल, को ‘काचलोट’ भी कहा जाता है, यह सभी दाँत वाली व्हेल में सबसे बड़ी होती है तथाअपने विशाल चौकोर सिर और संकीर्ण निचले जबड़े के कारण आसानी से पहचानी जा सकती है।यह गहरे नीले-भूरे या भूरे रंग की होती है, इसके पेट पर सफेद धब्बे होते हैं।
  • यह गठीले होते है, और इसमें छोटे पैडल जैसे फ्लिपर्स (Flippers) होते हैं। इसकी पीठ पर गोल कूबड़ की शृंखला होती है। ये संसार के समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जल क्षेत्र में पाई जाती हैं।

संरक्षण स्थिति:

  • स्पर्म व्हेल को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की रेड लिस्ट में ‘संकटग्रस्त’ श्रेणी में शामिल किया गया है।
  • साथ ही इसे वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) की ‘परिशिष्ट I’ में रखा गया है।
  • भारत में इसको ‘भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत संरक्षण प्राप्त है।

स्रोत – पीआईबी

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