एजूजेंथिली मूंगा (प्रवाल/कोरल) की चार प्रजातियों की मौजूदगी को दर्ज

एजूजेंथिली  मूंगा (प्रवाल/कोरल) की चार प्रजातियों की मौजूदगी को दर्ज

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पहली बार भारतीय जल क्षेत्र में एजूजैन्थिली (azooxanthellate) मूंगा की 4 प्रजातियों की मौजूदगी को दर्ज किया है ।

पहली बार, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के जल से एजूजेंथिली मूंगा (प्रवाल/कोरल) की चार प्रजातियों की मौजूदगी को दर्ज किया है।

मूंगा की सभी चार प्रजातियां एक ही कुल फ्लेबिलिडे (Flabellidae) से संबंधित हैं।

दर्ज की गयी चार प्रजातियां निम्नलिखित हैं:

  1. टुनकेटोफ्लैबेलम क्रैसम (Truncatoflabellum crissum),
  2. टी. इनक्रस्टैटम ( incrustatum),
  3. टी. एक्यूलेटम ( aculeatum), और
  4. टी. इरेगुलरे ( irregulare)।
  • ये प्रजातियां पहले जापान से लेकर फिलीपींस और ऑस्ट्रेलियाई जल में पाई गई थीं।
  • उपर्युक्त प्रजातियों में से केवल टी. क्रैसम को अदन की खाड़ी और फारस की खाड़ी सहित हिंद-पश्चिमी प्रशांत महासागर की सीमा के भीतर पाया गया है।
  • एजूजैथिली मूंगा, मूंगों का एक ऐसा समूह है, जिसमें जूजैथिली नहीं होता है। ये सूर्य से नहीं बल्कि प्लवक के अलग-अलग रूपों से पोषण प्राप्त करते हैं।
  • मूंगों के ये समूह गहरे समुद्र को दर्शाते हैं। इनमें अधिकांश प्रजातियां 200 मीटर से 1000 मीटर के बीच पायी जाती हैं। इन्हें उथले तटीय जल में भी देखा गया है।
  • भारत में कठोर मूंगा की लगभग 570 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से लगभग 90% प्रजातियां अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास के जल में पाई जाती हैं।
  • मूंगा पृथ्वी की सतह के 1% से भी कम हिस्से में पाए जाते हैं, लेकिन वे लगभग 25% समुद्री जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं।

मूंगा चट्टानों (प्रवाल भित्तियों) के बारे में

  • मूंगा चट्टान विश्व के महासागरों (विशेष रूप से उथले तटीय जल में) के सबसे अधिक उत्पादक, सतत और प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं।
  • ये निडारिया (Cnidaria) कुल से संबंधित अकशेरुकी जीव हैं। इनका जूजैथिली शैवाल के साथ सहजीवी (सिम्बायोटिक) संबंध होता है।

भारत में निम्नलिखित क्षेत्रों में विशाल मूंगा चट्टानें प्राप्त होती हैं-

मन्नार की खाड़ी,पाक-खाड़ी,कच्छ की खाड़ी,अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप। ये वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 की अनुसूची-1 के तहत संरक्षित हैं।

स्रोत -द हिन्दू

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