एक अध्ययन के अनुसार मध्याह्न भोजन के दीर्घकालिक प्रभाव दृष्टिगत होते हैं

एक अध्ययन के अनुसार मध्याह्न भोजन के दीर्घकालिक प्रभाव दृष्टिगत होते हैं

हाल ही में, एक अध्ययन अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute) के विशेषज्ञों द्वारा निष्पादित किया गया है। इस अध्ययन में इस सामूहिक आहार ग्रहण कार्यक्रम के प्रभावों का अपनी तरह का प्रथम अंतर-पीढ़ीगत विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है।

मुख्य विशेषताएं:

  • मध्याह्न भोजन योजना वर्ष 2006 और वर्ष 2016 के मध्य लंबाई और आयु संबंधी जेडस्कोर (height-for-age z-scores- HAZ) में भारत द्वारा प्राप्त किए गए 13-32% सुधार से संबद्ध थी।
  • निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर पर मध्याह्न भोजन और अगली पीढ़ी में ठिगनेपन (Stunting) के मामलों में कमी के मध्य दृढ़ संबद्धता विद्यमान थी। यह महिलाओं की शिक्षा, प्रजनन क्षमता तथा उनके द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग के माध्यम से संभव हुआ है।
  • ठिगनापन वह शारीरिक स्थिति है, जब किसी बच्चे की लम्बाई उसकी आयु की तुलना में कम होती है।

मध्याह्न भोजन योजनाः

  • यह योजना वर्ष 1995 में आरंभ की गई थी। इसके तहत सरकारी विद्यालयों में बच्चों को मुफ्त पका हुआ भोजन प्रदान किया जाता है। यह भोजन450 किलो कैलोरी की न्यूनतम ऊर्जा से युक्त होता है।
  • वर्ष 2011 तक, बजट में विस्तार के साथ और उच्चतम न्यायालय के आदेश के कार्यान्वयन के उपरांत, कवरेज में 48 प्रतिशत तक वृद्धि हुई थी।

कुपोषण की रोकथाम के अन्य उपायः

  • समेकित बाल विकास सेवाएं (ICDS):अंतर्गत अनुपूरक पोषण कार्यक्रम, विकास निगरानी और संवर्धन, पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा आदि की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • पोषण (POSHAN) अभियान, वर्ष 2017 में आरंभ किया गया था। यह बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के बीच पोषण में सुधार के लिएएक प्रमुख राष्ट्रीय पोषण मिशन है।

स्रोत – द हिन्दू

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