एक अध्ययन के अनुसार गंगा में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण पाया गया
दिल्ली स्थित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) टॉक्सिक्स लिंक द्वारा ‘क्वांटिटेटिव एनालिसिस ऑफ इक्रोप्लास्टिक्स अलोंग रिवर गंगा’ शीर्षक से एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की गई है। यह रिपोर्ट गोवा स्थित राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के सहयोग से जारी की गई है।
- नमूनों का परीक्षण फूरियर ट्रांसफॉर्म इंफ्रारेड (FTIR) स्पेक्ट्रोस्कोपी के माध्यम से किया गया था। इस तकनीक का सूक्ष्म कार्बनिक या अकार्बनिक सामग्री की पहचान करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- अध्ययन में हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी में नदी से एकत्र किए गए सभी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति की पुष्टि हुई है।
- माइक्रोप्लास्टिक्स को ऐसे प्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो 5 मि.मी. से कम लंबाई के होते हैं, और जल में अघुलनशील होते हैं। ये समुद्री प्रदूषण के एक प्रमुख स्रोत होने के कारण महत्वपूर्ण चिंता के विषय हैं।
माइक्रोप्लास्टिक का प्रभावः
- सैकड़ों समुद्री प्रजातियों द्वारा अंतर्ग्रहण, उनका श्वासअवरोधन और उलझाव ।
- पर्यटन स्थलों के सौंदर्य मूल्य को नुकसान पहुंचाते हैं ।
- वैश्विक तापन में योगदान देते हैं ।
- समुद्री खाद्य की खपत को स्वास्थ्य के लिए खतरा माना गया है ।
किए जाने वाले उपाय
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को सुदृढ़ बनाना और प्लास्टिक नियमों का बेहतर कार्यान्वयन ।
- प्लास्टिक अपशिष्ट में सुधार के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्वों (EPR) का क्रियान्वयन किया जाना चाहिए ।
- जल निकायों के आस पास के क्षेत्रों को नो-प्लास्टिकलिटर जोन के रूप में अधिसूचित करना और उल्लंघन पर कठोर दंड देना ।
- व्यवहार परिवर्तन के लिए जन अभियान पर वांछित बलदेने की आवश्यकता है ।
स्रोत – द हिन्दू